महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 107 श्लोक 89-111

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सप्ताधिकशततम (107) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 89-111 का हिन्दी अनुवाद

उस विमान में वह सुंदरी देवांगनाओं के साथ आनन्द भोगता है। उसे कोई चिंता तथा रोग नहीं सताते। दिव्य वस्त्रधारी और श्रीसम्पन्न रूप धारण करके वह दस करोड़ वर्षों तक वह वहां निवास करता है । जो लगातार जो लगातर बारह महीनों तक पूरे वीस दिन पर एक बार भोजन करता, सत्य बोलता, व्रत का पालन करता, मांस नहीं खाता, ब्रह्मचर्य का पालन करता तथा समस्त प्राणियों के हित में तत्पर रहता है, वह सूर्य देव के विशाल एवं रमणीय लोकों में जाता है । उसके पीछे-पीछे दिव्य माला और अनुलेपन धारण करने वाले गन्धर्वों तथा अप्सराओं से सेवित सोने के मनोरम विमान चलते हैं । जो लगातार बारह महीनों तक प्रतिदिन अग्निहोत्र करता हुआ एक्कीसवें दिन तक एक बार भोजन करता है, वह शुक्राचार्य तथा इन्द्र के दिव्यलोक में जाता है। इतना ही नहीं, उसे अश्विनीकुमारों और मरूदगणों के लोंकों की भी प्राप्ति होती है। उन लोकों में वह सदा सुख भोगने में ही तत्पर रहता है। दुःखों का तो वह नाम भी नहीं जानता है और श्रेष्ठ विमान पर विराजमान हो सुन्दरी स्त्रियों से सेवित होता हुआ शक्तिशाली देवता के समान क्रीड़ा करता है । जो बारह महीनों तक प्रतिदिन अगिन्होत्र करता हुआ बाईसवां दिन प्राप्त होन पर एक बार भोजन करता है तथा अहिंसा में तत्पर, बुद्धिमान, सत्यवादी और दोषदृष्टि से रहित होता है, वह सूर्य के समान तेजस्वी रूप धारण करके श्रेष्ठ विमान पर आरूढ़ हो वसुओं के लोक मे जाता है। वहां इच्छानुसार विचरता, अमृत पीकर रहता और दिव्य आभूषणों से विभूषित हो देवकन्याओं के साथ रमण करता है । जो बारह महीनों तक मिताहारी और जितेन्द्रिय होकर तेईसवें दिन एक बार भोजन करता है, वह वायु, शुक्राचार्य तथा रूद्र के लोक में जाता है। वहां अनेक गुणों से युक्त श्रेष्ठ विमान पर आरूढ हो इच्छानुसार विचरता, जहां इच्छा होती वहां जाता और अप्सराओं द्वारा पूजित होता है। उन लोकों में वह दिव्य आभूषणों से विभूषित हो देवकन्याओं के साथ रमण करता है । जो लगातार बारह महीनों अगिन्होत्र करता हुआ चैबीसवें दिन एक बार हविषन्न भोजन करता है, वह दिव्य माला, दिव्य वस्त्र, दिव्य गंध तथा दिव्य अनुलेपन धारण करके सुदीर्घ काल तक आदित्य लोक में सानन्द निवास करता है । वहां हंसयुक्त मनोरम एवं दिव्य सुवर्णमय विमान पर सहस्त्रों तथा अयुतों देवकन्याओं के साथ रमण करता है । जो लगातार बारह महीनों तक पचीसवें दिन तक एक बार भोजन करता ह, उसको सवारी के लिये बहुत-से विमान या वाहन प्राप्त होते हैं । उसके पीछे सिंहों और व्याघ्रों से जुते हुए तथा मेघों की गम्भीर गर्जना से निनादित बहुसंख्यक रथ सानन्द विजयघोष करते हएु चलते हैं। उन सुवर्णमय, निर्मल एवं मंगलकारी रथों पर देवकन्याऐं आरूढ़ होती हैं । वह दिव्य, उत्तम एवं मनोहर विमान पर विराजमान हो सैकड़ों सुन्दरियों से भरे हुए महल में सहस्त्र कल्पों तक निवास करता है। वहां देवताओं के भोज्य अमृत के समान उत्तम सुधारस को पीकर वह जीवन बिताता है । जो लगातार बारह महीनों तक मन और इन्द्रियों को संयम में रखकर मिताहारी हो छब्बीसवें दिन एक बार भोजर करता है तथा बीतराग और जितेन्द्रिय हो प्रतिदिन अग्नि में आहुति देता है, वह महाभाग मनुष्य अप्सराओं से पूजित हो सात मरूदगणों और आठ वसुओं के लोकों में जाता है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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