महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 115 श्लोक 50-76
पअ्चदशाधिकशततम (115) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
प्रभो! प्राचीन काल में ऋषियों ने चेदिराज वसुसे अपना संदेह पूछाथा। उस समय वसुने मांस को भी जो सर्वथा अभक्ष्य है, भक्ष्य बता दिया । उस समय आकशचारी राजा वसु अनुचित निर्णय देने के कारण आकाश से पृथ्वी पर गिर पड़े तदनन्तर पृथ्वी पर भी फिर यही निर्णय देने के कारण वे पातालामें समा गये । निष्पाप राजेन्द्र! मनुजेश्वर! मेरी कही हुई यह बात भी सुनो–मांस–भक्षण न करने से सब प्रकार का सुख मिलता है । जो मनुष्य सौ वर्षो तक कठोर तपस्या करता है तथा जो केवल मांस का परित्याग कर देता है-ये दोनों मेरी दृष्टि में एक समान हैं । नरेश्वर! विशेषत: शरदतऋतु,शुक्लपक्ष में मद्य और मांस का सर्वथा त्याग कर दे, क्योंकि ऐसा करने में धर्म होता है । जो मनुष्य वर्षा के चार महीनों में मांस का परित्याग कर देता है, वह चार कल्याणमयी वस्तुओं-कीर्ति,आयु,यश और बल को प्राप्त कर लेता है । अथवा एक महीने तक सब प्रकार के मांसों का त्याग करने वाला पुरुष सम्पूर्ण दु:खो से पार हो सुखी एवं नीरोग जीवन व्यतीत करता है। जो एक-एक मास अथवा एक-एक पक्षतक मांस खाना छोड देते हैं, हिंसा से दूर हटे हुए उन मनुष्यों को ब्रहृालोंक की प्राप्ति होती है (फिर जो कभी भी मांस नहीं खाते, उनके लाभ की तो कोई सीमा ही नहीं है) । कुन्तीनन्दन! जिन राजाओं ने आश्विन मास के दोनों पक्ष अथवा एक पक्ष में मांस भक्षण् का निषेध किया था, वे सम्पूर्ण भूतों के आत्मारुप हो गये थे और उन्हें परावर तत्व का ज्ञान हो गया थ। उनके नाम इस प्रकार है-नाभाग,अम्बरीष,महात्मा गय,आयु,अनरण्य,दिलीप रघु, पूरू, कार्तवीर्य, अनिरुद्ध, नहुष, ययाति, नृग,विश्वगश्व,शशविन्दु,युवनाश्व,उशीनरपुत्र शिबि,मुचुकुन्द,मान्धता अथवा हरिश्चन्द्र । सत्य बोलो,असत्य न बोला, सत्य ही सनातन धर्म है। राजा हरिश्चन्द्र सत्य के प्रभाव से आकाश में चन्द्रमा के समान विचरते हैं । राजेन्द्र! श्येनचित्र,सोमक,वृक, रैवत, रन्तिदेव, वसु, सृंजक, अन्यान्य नेश, कृप, भरत, दुष्यन्त, करुष, राम,अलर्क, नर,विरुपाश्व,निमि,बुद्धिमान्,जनक,पुरुरवा,पृथु,वीरसेन,इक्ष्वाकु,शम्भु,श्वेतसागर,अज,धुन्धु,सुबाहु,हर्यश्व क्षुप भरत- इन सबने तथा अन्यान्य राजाअें ने भी कभी मांस नहीं खाया था । वे सब नरेश अपनी कान्ति से प्रज्वलित होते हुए वहॉं ब्रह्मलोंक में विराज रहे हैं, गन्धर्व उनकी उपासना करते है और सहस्त्रों दिव्यांगनाऍं उन ्हें घेरे रहती हैं । अत: यह अहिंसारुप धर्म सब धर्मो से उतम है। जो महात्मा इसका आचरण करते हैं वे स्वर्गलोक में निवास करते हैं । जो धर्मात्मा पुरुष जन्म से ही इस जगत् में शहद् मद्य और मांसका सदा के लिये परित्याग कर देते हैं वे सब–के-सब मुनि माने गये हैं । जो मांस–भक्षण के परित्यागरुप इस धर्म का आचरण करता अथवा इसे दूसरों को सुनाता है वह कितना ही दुराचारी क्यों न रहा हो नरक में नहीं पड़ता । राजन्! जो ऋषियों द्वारा सम्मानित एवं पवित्र इस मांस–भक्षण के त्याग के प्रकारण को पढ़ता अथवा बारंबार सुनता है, वह सब पापों से मुक्त हो सम्पूर्ण मनोवांछित भोगोद्वारा सम्मानित होता है और अपने सजातीय बन्धुओं में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लेता है, इसमें संशय नहीं है । इतना ही नहीं, इसके श्रवण अथवा पठन से आपति में पडा़ हुआ आपतिसे, बन्धन में बँधा हुआ बन्धन से, रोगी रोग से और दुखी से छुटकारा पा जाता है । कुरुश्रेष्ठ! इसके प्रभाव से मनुष्य तिर्यग्योनिमें नहीं पडता तथा उसे सुन्दर रुप,सम्पतिऔर महान् यश की प्राप्ति हेाती है । राजन्! यह मैंने तुम्हें ऋषियों द्वारा निर्मित मांस – त्याग का विधान तथा प्रवृतिविषयक धर्म भी बताया है ।
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