महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 129 श्लोक 19-40
त्रिशदधिकशततम (130) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
उपानह (जूता), छत्र तथा कपिला गौका भी यथोचित रीतिसे दान करना चाहिए। पुष्कर तीर्थ में वेदों के पांरगत विद्वान् ब्राह्मण कपिला गाय देनी चाहिए और अग्नि होत्र के नियम का सब तरह से प्रयत्न पूर्वक पालन करना चाहिए । इसके सिवा यह एक दूसरा धर्म भी चित्रगुप्त ने बताया है। उसके पृथक-पृथक फल का वर्णन सभी साधुपुरूष सुने। समस्त प्राणीकाल काल क्रम से प्रलयको प्राप्त होते हैं। पापों के कारण दुर्गम नरक में पड़ें हुए प्राणी भूंख–प्यास से पीड़ित हो आग में जलते हूए पकाये जाते हैं। वहां उस याताना से निकल भागने का कोई उपाय नहीं है । मन्दबुद्धि मनुष्य ही नरक के घोर दुखमय अन्धकार में प्रवेश करते है। उस अवसर के लिये मैं धर्म उपदेश करता हूं, जिससे मनुष्य दुर्गम नरक से पार हो सकता है । उस धर्म में व्यय बहुत थोड़ा हैं, परंतु लाभ महान् है । उससे मृत्यु के पश्चात् भी उत्तम सुख की प्राप्ति होती है। जल के गुण दिव्य हैं । प्रेतलोक में ये गुण विशेष रूप से लक्षित होते हैं । वहां पुण्योदका नाम से प्रसिद्ध नदी है, जो यमलोकनिवासियों के लिए विहित है। उसमें अमृतके समान मधुर, शीतल एवं अक्षय जल भरा रहता है । जो यहां जलदान करता है, वहीं परलोक में जानेपर उस नदी का जल पीता है। अब दीपदान से जो अधिकाधिक लाभ होता है, उसको सुनों । दीपदान करने वाला मनुष्य नरक के नियत अन्धकार का दर्शन नहीं करता है। उसे चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि प्रकाश देते रहते हैं । देवता भी दीपदान करने वाले का आदर करते हैं । उसके लिए सम्पूर्ण दिशाएं निर्मल होती हैं तथा प्रेतलोक में जाने पर वह मनुष्य सूर्य के समान प्रकाशित होता हैं । इसलिए विशेष यत्न करके दीप और जल का दान करना चाहिए। विशेषत: पुष्कर तीर्थ में जो वेदों के पारंगत विद्वान् ब्राह्माण को कपिला दान करते है, उन्हें उस दान का जो फल मिलता है, उसे सुनो। उसे सांडों– सहित सौ गौऔं के दान का शाश्वत फल प्राप्त होता हैं। ब्रह्महत्या के समान जो कोई पाप होता हे, उसे एकमात्र कपिलाका दान शुद्ध कर देता हैं। वह एक हीगोदान सौ गोदानों के बराबर है। इसलिए ज्येष्ठपुष्कर तीर्थ कार्तिक की पूर्णिमा को अवश्य कपिला गौका दान करना चाहिये । जो श्रेष्ठ एवं सुपात्र ब्राह्माण को उपानह (जूता) दान करता है, उसके लिये कहीं कोई विषम स्थान नहीं हैं। न उसे दु:ख उठाना पड़ता है और न कांटों का ही सामना करना पड़ता है। छत्र–दान करने से परलोक में जाने पर दाता को सुखदायिनि छाया सुलभ होती हैं । इस लोक में दिये हुए दान का कभी नाश नहीं होता। चित्रगुप्त यह मत सुनकर भगवान् सूर्य के शरीर में रोमांचहो आया। उन महोतेजस्वी सूर्य ने सम्पूर्ण देवताओं ओैर पितरों से कहो- ‘आपलोगों ने महामना चित्रगुप्त के धर्मविषयक गुप्त रहस्य को सुन लिया । जो मनुष्य महामनस्वी ब्राह्मणों पर श्रद्धा करके यह दान देते है, उन्हें भय नहीं होता । आगे बताये जाने वाले पांच धर्मविषयक दोष जिनमें विधमान है, उनका यहां कभी उद्धार नहीं होता। ऐेसे अनाचारी नराधमों से बात नही करनी चाहिऐ। उन्हें दूर से ही त्याग देना चाहियें । ब्रह्महत्यारा, गोहत्या करनेवाला, परस्त्रीलम्प, अश्रद्धालु तथा जो स्त्री पर निर्भर रहकर जीविका चलाता है- ये ही पूर्वोक्त पांच प्रकार के दुराचारी हैं । ये पापी कर्मी मनुष्य प्रेतलोक में जाकर नरक की आग में मछलियों की तरह पकाये जाते हैं ओर पीब तथा रक्त भोजन करते हैं । इन पांचों पापाचारियों से देवताओं, पितरों, स्नातक ब्राह्मणों तथा अन्यान्य तपोधनों को बातचीत भी नहीं करनी चाहिए ।
« पीछे | आगे » |