महाभारत शल्य पर्व अध्याय 33 श्लोक 37-55

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त्रयस्त्रिश (33) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: त्रयस्त्रिश अध्याय: श्लोक 37-55 का हिन्दी अनुवाद

ऐसा कहकर भरतवंशी वीरों में श्रेष्ठ पराक्रमी भीमसेन गदा उठा कर युद्ध के लिये उठ खड़े हुए और जैसे इन्द्र ने वृत्रासुर को ललकारा था, उसी प्रकार उन्होंने दुर्योधन का आहान किया ।महाराज ! उस समय आपका अत्यन्त पराक्रमी पुत्र दुर्योधन भीमसेन की उस ललकार को न सह सका। वह तुरंत ही उनका सामना करने के लिये उपस्थित हो गया, मानो एक मतवाला हाथी दूसरे मदोन्मŸा गजराज से भिड़ने को उद्यत हो गया हो । हाथ में गदा लेकर युद्ध के लिये उपस्थित हुए आपके पुत्र को समस्त पाण्डवों ने श्रृंगधारी कैलास पर्वत के समान देखा । जैसे कोई मतवाला हाथी अपने यूथ से बिछुड़ गया हो, उसी प्रकार अकेले आये हुए आपके महाबली पुत्र दुर्योधन को पाकर समस्त पाण्डव हर्ष से खिल उठे। उस समय दुर्योधन के मन में न घबराहट थी, न भय। न ग्लानि थी, न व्यथा। वह युद्धस्थल में सिंह के समान निर्भय खड़ा था । राजन् ! श्रृंगधारी कैलास पर्वत के समान गदा उठाये दुर्योधन को देखकर भीमसेन ने उससे कहा- ‘ दुर्योधन ! तूने तथा राजा धृतराष्ट्र ने भी हम लोगों पर जो-जो अत्याचार किया था और वारणावत नगर में जो कुछ हुआ था, उन सारे पाप कर्मो को याद कर ले । ‘दुरात्मन् ! तूने भरी सभा में रजस्वला द्रोपदी को क्लेश पहुंचाया, शकुनि की सलाह लेकर राजा युधिष्ठिर को कपटपूर्वक जूए में हराया तथा निरपराध कुन्ती पुत्रों पर दूसरे-दूसरे जो पाप एवं अत्याचार किये थे, उन सब का महान् अशुभ फल आज तू अपनी आंखों देख ले । ‘तेरे ही कारण हम सब लोगों के पितामह महायशस्वी गंगानन्दन भरतश्रेष्ठ भीष्मजी आज शरशय्या पर पड़े हुए हैं ।। ‘तेरी ही करतूतों से आचार्य द्रोण, कर्ण, प्रतापी शल्य तथा वैरका आदि स्त्रष्टा वह शकुनि-ये सभी रणभूमि में मारे गये हैं । ‘तेरे भाई, शूरवीर पुत्र, सैनिक तथा युद्ध में पीठ न दिखाने वाले अन्य बहुत से शौर्य सम्पन्न नरेश भी मृत्यु के अधीन हो गये हैं । ‘ये तथा दूसरे बहुसंख्यक क्षत्रिय शिरोमणि वीर मार डाले गये हैं। द्रौपदी को क्लेश पहुंचाने वाले पापी प्रातिकामी का भी वध हो चुका है । ‘अब इस वंश का नाश करने वाला नराधम एक मात्र तू ही बच गया है। आज इस गदा से तुझे भी मार डालूंगा; इसमें संशय नहीं है । ‘नरेश्वर ! आज रणभूमि में मैं तेरा सारा घमंड चूर्ण कर दूंगा। राजन् ! तेरे मन में राज्य पाने की जो बड़ी भारी लालसा है, उसका तथा पाण्डवों पर तेरे द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों का भी अन्त कर डालूंगा’ । दुर्योधन बोला-वृकोदर ! बहुत बढ़-बढ़ कर बातें बनाने से क्या लाभ ? आज मेरे साथ भिड़ तो सही। मैं युद्ध का तेरा सारा हौसला मिटा दूंगा । पापी ! क्या तू देखता नहीं कि मैं हिमालय के शिखर की भांति विशाल गदा हाथ में लेकर युद्ध के लिये खड़ा हूं । ओ पापी ! आज कौन ऐसा शत्रु है, जो मेरे हाथ में गदा रहते हुए भी मुझे मार सके। न्याय पूर्वक युद्ध करते हुए देवताओं के राजा इन्द्र भी मुझे परास्त नहीं कर सकते । कुन्तीपुत्र ! शरद् ऋतु के निर्जल मेघ की भांति व्यर्थ गर्जना न कर। आज तेरे पास जितना बल हो, वह सब युद्ध में दिखा ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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