महाभारत शल्य पर्व अध्याय 44 श्लोक 20-40

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चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 20-40 का हिन्दी अनुवाद

सरिताओं में श्रेष्ठ गंगा भी उस दिव्य बालक के पास आ बैठी। पृथ्वी देवी ने उत्तम रूप धारण करके उसे अपने अंक में धारण किया । बृहस्पतिजी ने वहां उस बालक के जातकर्म आदि संस्कार किये और चार स्वरूपों में अभिव्यक्त होने वाला वेद हाथ जोड़ कर उसकी सेवा में उपस्थित हुआ । चारों चरणों से युक्त धनुर्वेद, संग्रह सहित शस्त्र-समूह तथा केवल साक्षात् वाणी-ये सभी कुमार की सेवा में उपस्थित हुए । कुमार ने देखा की सैकड़ों भूतसंघों से घिरे हुए महा पराक्रमी देवाधिदेव उमापति गिरिराजनन्दिनी उमा के साथ पास ही बैठे हुए हैं । उनके साथ आये हुए भूतसंघों के शरीर देखने में बड़े ही अदभुत, विकृत और विकराल थे। उनके आभूषण और ध्वज भी बड़े विकट थे । उन में से किन्हीं के मुंह बाघ और सिंह के समान थे तो किन्हीं के रीछ, बिल्ली और मगर के समान। कितनों के मुख वन-बिलावों के तुल्य थे। कितने ही हाथी, ऊंट और उल्लू के समान मुख वाले थे। बहुत से गीधों और गीदड़ों के समान दिखायी देते थे। किन्हीं-किन्हीं के मुख क्रौन्च पक्षी, कबूतर और रंकु मृग के समान थे । बहुतेरे भूत जहां-तहां हिंसक जन्तु, साही, गोह, बकरी, भेड़ और गायों के समान शरीर धारण करते थे। कितने ही मेघों और पर्वतों के समान जान पड़ते थे। उन्होंने अपने हाथों में चक्र और गदा आदि आयुध ले रक्खे थे। कोई अंजन-पुन्ज के समान काले और कोई श्वेत गिरि के समान गौर कान्ति से सुशोभित होते थे । प्रजानाथ ! वहां सात मातृकाएं आ गयी थीं। साध्य, विश्व, मरुद्रण, वसुगण, पितर, रुद्र, आदित्य, सिद्ध, भुजंग, दानव, पक्षी, पुत्र सहित स्वयम्भू भगवान् ब्रह्मा, श्रीविष्णु तथा इन्द्र अपने नियमों से च्युत न होने वाले उस श्रेष्ठ कुमार को दखने के लिये पधारे थे । देवताओं और गन्धर्वो में श्रेष्ठ नारद आदि देवर्षि, बृहस्पति आदि सिद्ध, सम्पूर्ण जगत् से श्रेष्ठ तथा देवताओं के भी देवता पितृ-गण, सम्पूर्ण यामगण और धामगण भी वहां आये थे । बालक होने पर भी बलशाली एवं महान् योगबल से सम्पन्न कुमार त्रिशूल और पिनाक धारण करने वाले देवेश्वर भगवान् शिव की ओर चले । १ ब्राह्मी, माहेश्वरी, वैष्णवी, कौमारी, इन्द्रणी, वाराही तथा चामुण्डा-ये सात मातृकाएं हैं। उन्हें आते देख एक ही समय भगवान् शंकर, गिरिराज नन्दिनी उमा, गंगा और अग्निदेव के मन में यह संकल्प उठा कि देखें यह बालक पिता-माता का गौरव प्रदान करने के लिये पहले किसके पास जाता है ? क्या यह मेरे पास आयेगा ? यह प्रश्न उन सब के मन में उठा । तब उन सबके अभिप्राय को लक्ष्य करके कुमार ने एक ही साथ योगबल का आश्रय ले अपने अनेक शरीर बना लिये । तदनन्तर प्रभावशाली भगवान् स्कन्द क्षण भर में चार रूपों में प्रकट हो गये। पीछे जो उनकी मूर्तियां प्रकट हुई, उनका नाम क्रमशः शाख, विशाख और नैगमेय हुआ । इस प्रकार अपने आपको चार स्वरूपों में प्रकट करके अदभुत दिखायी देने वाले प्रभावशाली भगवान् स्कन्द जहां रुद्र थे, उधर ही गये। विशाख उस ओर चल दिये, जिस ओर गिरिराजनन्दिनी उमा देवी बैठी थी । वायुमूर्ति भगवान् शाख अग्नि के पास और अग्नितुल्य तेजस्वी नैगमेय गंगाजी के निकट गये ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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