महाभारत शल्य पर्व अध्याय 45 श्लोक 50-85

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पन्चचत्वारिंश (45) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पन्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 50-85 का हिन्दी अनुवाद

समुद्र ने भी अग्नि पुत्र को दो गदाधारी महापार्षद दिये, जिनके नाम थे-संग्रह और विग्रह । शुभदर्शना पार्वती देवी ने अग्नि पुत्र को तीन पार्षद दिये-उन्माद, शंकुकर्ण तथा पुष्पदन्त । पुरुषसिंह ! नागराज वासुकि ने अग्नि कुमार को पार्षद रूप से जय और महाजय नामक दो नाग भेंट किये । इस प्रकार साध्य, रुद्र वसु, पितृगण, समुद्र, सरिताओं और महाबली पर्वतों ने उन्हें विभिन्न सेनापति अर्पित किये, जो शूल, पटिटश और नाना प्रकार के दिव्य आयुध धारण किये हुए थे। वे सब के सब भांति-भांति की वेश-भूषा से विभूषित थे । स्कन्द के जो नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न और विचित्र आभूषणों से विभूषित अन्य सैनिक थे, उनके नाम सुनो । शंकुकर्ण, निकुम्भ, पदम, कुमुद, अनन्त, द्वादशभुज, कृष्ण, उपकृष्ण, घ्राणश्रवा, कपिस्कन्ध, कान्चनाक्ष, जलन्धम, अक्ष, संतर्जन, कुनदीक, तमोन्तकृत्, एकाक्ष, द्वादशाक्ष, एकजट, प्रभु, सहस्त्रबाहु, विकट, व्याघ्राक्ष, क्षितिकम्पन, पुण्यनामा, सुनामा, सुचक्र, प्रियदर्शन, परिश्रुत, कोकनद, प्रियमाल्यानुलेपन, अजोदर, गजशिरा, स्कन्धाक्ष, शतलोचन, ज्वालाजिह, करालाक्ष, शितिकेश, जटी, हरि, परिश्रुत, कोकनद, कृष्णकेश, जटाधर, चतुर्देष्ट्र, अष्टजिह, मेघनाद, पृथुश्रवा, विद्युताक्ष, धनुर्वक्त्र, जाठर, मारुताशन, उदाराक्ष, रथाक्ष, वज्रनाभ, वसुप्रभ, समुद्रवेग, शैलकम्पी, वृष, मेष, प्रवाह, नन्द, उपनन्द, धूम्र, श्वेत, कलिंग, सिद्धार्थ, वरद, प्रियक, नन्द प्रतापी गोनन्द, आनन्द, प्रमोद, स्वस्तिक, ध्रुवक, क्षेमवाह, सुवाह, सिद्धपात्र, गोव्रज, कनकापीड, महापरिषदेश्वर, गायन, हसन, बाण, पराक्रमी खंग, वैताली, गतिताली, कथक, वातिक हंसज, पंकदिग्धांग, समुद्रोन्मादन, रणोत्कट, प्रहास, श्वेतसिद्ध, नन्दन, कालकण्ठ, प्रभास, कुम्भाण्डकोदर, कालकक्ष, सित, भूत मथन, यज्ञवाह, सुवाह, देवयाजी, सोमप, मज्जान, महातेजा, क्रथ, क्राथ, तुहर, तुहार, पराक्रमी चित्रदेव, मधुर, सुप्रसाद, किरीटी, महाबल, वत्सल, मधुवर्ण, कलशोदर, धर्मद, मन्मथकर, शक्तिशाली सूचीवक्त्र, श्वेतवक्त्र, सुवक्त्र, चारुवक्त्र, पाण्डुर, दण्डबाहु, सुबाहु, रज, कोकिलक, अचल, कनकाक्ष, बालस्वामी, संचारक, कोकनद, गृध्रपत्र, जम्बुक, लोहवक्त्र, अजवक्त्र, जवन, कुम्भवक्त्र, कुम्भक, स्वर्णग्रीव, कृष्णौजा, हंसवक्त्र, चन्द्रभ, पाणिकूर्च, शम्बूक, पन्चवक्त्र, शिक्षक, चापवक्त्र, जम्बूक, शाकवक्त्र, अैर कुन्जल । जनमेजय ! ये सब पार्षद योगयुक्त, महामना तथा निरन्तर ब्राह्मणों से प्रेम रखने वाले हैं। इनके सिवा, पितामह ब्रह्माजी के दिये हुए जो महामना महापार्षद हैं, वे तथा दूसरे बालक, तरुण एवं वृद्ध सहस्त्रों पार्षद कुमार की सेवा में उपस्थित हुए ।। जनमेजय ! उन सबके नाना प्रकार के मुख थे। किनके कैसे मुख थे ? यह बताता हूं, सुनो। कुछ पार्षदों के मुख कछुओं और मुर्गो के समान थे, कितनों के मुख खरगोश, उल्लू, गदहा, ऊंट और सूअर के समान थे । भारत ! बहुतों के मुख बिल्ली और खरगोश के समान थे। किन्हीं के मुख बहुत बड़े थे और किन्हीं के नेवले, उल्लू, कौए, चूहे, बभ्रु तथा मयूर के मुखों के समान थे । किन्हीं-किन्हीं के मुख मछली, मेढे, बकरी, भेड़, भैंसे, रीछ, व्याघ्र, भेडि़ये तथा सिंहों के समान थे । किन्ही के मुख हाथी के समान थे, इसलिये वे बड़े भयानक जान पड़ते थे। कुछ पार्षदों के मुख मगर, गरुड़, कंक भेडि़यों और कौओं के समान जान पड़ते थे । भारत ! कुछ पार्षद गाय, गदहा, ऊंट और वनबिलाव के समान मुख धारण करते थे। किन्हीं के पेट, पैर और दूसरे-दूसरे अंग भी विशाल थे। उनकी आंखें तारों के समान चमकती थीं । कुछ पार्षदों के मुख कबूतर, बैल, कोयल, बाज और तीतरों के समान थे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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