महाभारत शल्य पर्व अध्याय 47 श्लोक 21-33
सप्तचत्वारिंश (47) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभाग ! फिर वे जैसे आये थे, वैसे लौट गये और अग्नि देव महर्षि भृगु के शाप से सर्वभक्षी हो गये। उन ब्रह्मवादी मुनि ने जैसा कहा था, वैसा ही हुआ । उस तीर्थ में गोता लगाकर बुद्धिमान् बलरामजी ब्रह्म योनि तीर्थ में गये; जहां सर्वलोक पितामह ब्रह्मा ने सृष्टि की थी । पूर्वकाल में देवताओं सहित भगवान् ब्रह्मा ने वहां स्नान करके विधिपूर्वक देव तीर्थो की रचना की थी । राजन् ! उस तीर्थ में स्नान और नाना प्रकार के धन का दान करके बलरामजी कुबेर-तीर्थ में गये, जहां बड़ी भारी तपस्या करके भगवान् कुबेर ने धनाध्यक्ष का पद प्राप्त किया था । नरेश्वर ! वहीं उनके पास धन और निधियां पहुंच गयी थी। नरश्रेष्ठ ! हलधारी बलराम ने उस तीर्थ में जाकर स्नान के पश्चात् ब्रह्माणों के लिये विधिपूर्वक धन का दान किया । तत्पश्चात् उन्होंने वहां के एक उत्तम वन में कुबेर के उस स्थान का दर्शन किया, जहां पूर्वकाल में महात्मा यक्षराज कुबेर ने बड़ी भारी तपस्या की और बहुत से वर प्राप्त किये । महाबाहो ! धनपति कुबेर ने वहां अमित तेजस्वी रुद्र के साथ मित्रता, धन का स्वामित्व, देवत्व, लोकपालत्व और नलकूबर नामक पुत्र अनायास ही प्राप्त कर लिये । वहीं आकर देवताओं ने उनका अभिषेक किया तथा उनके लिये हंसो से जुता हुआ और मन के समान वेगशाली वाहन दिव्य पुष्पक विमान दिया। साथ ही उन्हें यक्षों का राजा बना दिया । राजन् ! उस तीर्थ में स्नान और प्रचुर दान करके श्वेत चन्दनधारी बलरामजी शीघ्रतापूर्वक बदरपाचन नामक शुभ तीर्थ में गये, जो सब प्रकार के जीव-जन्तुओं से सेवित, नाना ऋतुओं की शोभा से सम्पन्न वनस्थलियों से युक्त तथा निरन्तर फूलों और फलों से भरा रहने वाला था ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अनतर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा और सारस्वतोपाख्यान विषयक सैंतालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |