श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 19 श्लोक 12-16
दशम स्कन्ध: एकोनविंशोऽध्यायः (19) (पूर्वार्ध)
भगवान् की आज्ञा सुनकर उन ग्वालबालों ने कहा ‘बहुत अच्छा’ और अपनी आँखें मूँद लीं। तब योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण ने उस भयंकर आग को अपने मुँह में पी लिया । इसके बाद जब ग्वालबालों ने अपनी-अपनी आँखें खोलकर देखा तब अपने को भाण्डीर वट पास पाया। इस प्रकार अपने-आपको और गौओं को दावानल बचा देख वे ग्वालबाल बहुत ही विस्मित हुए । श्रीकृष्ण की इस योगसिद्धि तथा योगमाया के प्रभाव को एवं दावा-नल से अपनी रक्षा को देखकर उन्होंने यही समझा कि श्रीकृष्ण कोई देवता हैं ।
परीक्षित्! सायंकाल होने पर बलरामजी के साथ भगवान् श्रीकृष्ण ने गौएँ लौतायीं और वंशी बजाते हुए उनके पीछे-पीछे व्रज की यात्रा की। उस समय ग्वालबाल उनकी स्तुति करते आ रहे थे । इधर व्रज में गोपियों को श्रीकृष्ण के बिना एक-एक क्षण सौ-सौ युग के समान हो रहा था। जब भगवान् श्रीकृष्ण लौटे तब उनका दर्शन करके वे परमानन्द में मग्न हो गयीं ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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