श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 1 श्लोक 50-61

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:४५, २३ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "पूर्वाध" to "पूर्वार्ध")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय: श्लोक 50-61 का हिन्दी अनुवाद

सम्भव है, उल्टा ही हो। मेरा लड़का ही इसे मार डाले! क्योंकि विधाता के विधान का पार पाना बहुत कठिन है। मृत्यु सामने आकर भी टल जाती है और टली हुई भी लौट आती है। जिस समय वन में आग लगती है, उस समय कौन-सी लकड़ी जले और कौन-सी न जले, दूर की जल जाय और पास की बची रहे - इन सब बातों में अदृष्ट के सिवा और कोई कारण नहीं होता। वैसे ही किस प्राणी का कौन-सा शरीर बना रहेगा और किस हेतु से कौन-सा शरीर नष्ट हो जायेगा - इस बात का पता लगा लेना बहुत ही कठिन है। अपनी बुद्धि के अनुसार ऐसा निश्चय करके वसुदेवजी ने बहुत सम्मान के साथ पापी कंस की बड़ी प्रशंसा की। परीक्षित! कंस बड़ा क्रूर और निर्ल्लज था; अतः ऐसा करते समय वसुदेवजी के मन में बड़ी पीड़ा भी हो रही थी। फिर भी उन्होंने ऊपर से अपने मुखकमल को प्रफुल्लित करके हँसते हुए कहा।

वसुदेवजी ने कहा- 'सौम्य! आपको देवकी से तो कोई भय है नहीं, जैसा कि आकाशवाणी ने कहा है। भय है पुत्रों से, सो इसके पुत्र मैं आपको लाकर सौंप दूँगा।'

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित! कंस जानता था कि वसुदेव जी के वचन झूठे नहीं होते और इन्होंने जो कुछ कहा है, वह युक्तिसंगत भी है। इसलिए उसने अपनी बहिन देवकी को मारने का विचार छोड़ दिया। इससे वसुदेवजी बहुत प्रसन्न हुए और उसकी प्रशंसा करके अपने घर चले आये। देवकी बड़ी सती-साध्वी थी। सारे देवता उसके शरीर में निवास करते थे। समय आने पर देवकी के गर्भ से प्रतिवर्ष एक-एक करके आठ पुत्र तथा एक कन्या उत्पन्न हुई। पहले पुत्र का नाम था कीर्तिमान। वसुदेवजी ने उसे लाकर कंस को दे दिया। ऐसा करते समय उन्हें कष्ट तो अवश्य हुआ, परन्तु उससे भी बड़ा कष्ट उन्हें इस बात का था कि कहीं उनके वचन झूठे न हो जायँ |

परीक्षित! सत्यसन्ध पुरुष बड़े-से-बड़ा कष्ट भी सह लेते हैं, ज्ञानियों को किसी बात की अपेक्षा नहीं होती, नीच पुरुष बुरे-से-बुरे काम भी कर सकते हैं और जो जितेन्द्रिये हैं—जिन्होंने भगवान को ह्रदय में धारण कर रखा है, वे सब कुछ त्याग सकते हैं। जब कंस ने देखा कि वसुदेव जी का अपने पुत्रों के जीवन और मृत्यु में समान भाव है एवं वे सत्य में पूर्ण निष्ठावान भी हैं, तब वह प्रसन्न हुआ और उनसे हँसकर बोला- वसुदेवजी! आप इस नन्हे-से सुकुमार बालक को ले जाइये। इससे मुझे कोई भय नहीं है। क्योंकि आकाशवाणी ने तो ऐसा कहा था कि देवकी के आठवें गर्भ से उत्पन्न सन्तान के द्वारा मेरी मृत्यु होगी। वसुदेवजी ने कहा—‘ठीक है’ और उस बालक को लेकर वापस लौट आये। परन्तु उन्हें मालूम था कि कंस बड़ा दुष्ट है और उसका मन उसके हाथ में नहीं है। वह किसी भी क्षण बदल सकता है। इसलिए उन्होंने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-