श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 26 श्लोक 1-13
दशम स्कन्ध: षड्विंशोऽध्यायः (26) (पूर्वार्ध)
श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! व्रज के गोप भगवान् श्रीकृष्ण के ऐसे अलौकिक कर्म देखकर बड़े आश्चर्य में पड़ गये। उन्हें भगवान् की अनन्त शक्ति का तो पता था नहीं, वे इकट्ठे होकर आपस में इस प्रकार कहने लगे— ‘इस बालक के ये कर्म बड़े अलौकिक हैं। इसका हमारे-जैसे गँवार ग्रामीणों में जन्म लेना तो इसके लिये बड़ी निन्दा की बात है। यह भला, कैसे उचित हो सकता है । जैसे गजराज कोई कमल उखाड़कर उसे ऊपर उठा ले और धारण करे, वैसे ही इस नन्हें-से सात वर्ष के बालक ने एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्द्धन को उखाड़ लिया और खेल-खेल में सात दिनों तक उठाये रखा । यह साधारण मनुष्य के लिये भला कैसे समभाव है ? जब यह नन्हा-सा बच्चा था, उस समय बड़ी भयंकर राक्षसी पूतना आयी और इसने आँख बंद किये-किये ही उसका स्तन तो पिया ही, प्राण भी पी डाले—ठीक वैसे ही, जैसे काल शरीर की आयु को को निगल जाता है । जिस समय यह केवल तीन महीने का था और छकड़े के नीचे सोकर रो रहा था, उस समय रोते-रोते इसने ऐसा पाँव उछाला कि उसकी ठोकर से वह बड़ा भारी छकड़ा उलटकर गिर ही पड़ा । उस समय तो यह एक ही वर्ष का था, जब दैत्य बवंडर के रूप में इसे बैठे-बैठे आकाश में उड़ा ले गया था। तुम सब जानते ही हो कि इसने उस तृणावर्त दैत्य को गला घोंटकर मार डाला । उस दिन की बात तो सभी जानते हैं कि माखनचोरी करने पर यशोदारानी ने इसे ऊखल से बाँध दिया था। यह घुटनों के बल बकैयाँ खींचते-खींचते उन दोनों विशाल अर्जुन वृक्षों के बीच में से निकल गया और उन्हें उखाड़ ही डाला । जब यह ग्वालबाल और बलरामजी के साथ बछड़ों को चराने के लिये वन में गया हुआ था उस समय इसको मार डालने के लिये एक दैत्य बगुले के रूप में आया और इसने दोनों हाथों से उसके दोनों ठोर पकड़कर उसे तिनके की तरह चीर डाला । जिस समय इसको मार डालने की इच्छा से एक दैत्य बछड़े के रूप में बछड़ों के झुंड में घुस गया था उस समय इसने उस दैत्य को खेल-ही-खेल में मार डाला और उसे कैथ के पेड़ों पर पटककर उन पेड़ों को भी गिरा दिया । इसने बलरामजी के साथ मिलकर गधे के रूप में रहनेवाले धेनुकासुर तथा उसके भाई-बंधुओं को मार डाला और पके हुए फलों से पूर्ण तालवन को सबके लिये उपयोगी और मंगलमय बना दिया । इसी ने बलशाली बलरामजी के द्वारा क्रूर प्रलम्बासुर को मरवा डाला तथा दावानल से गौओं और ग्वालबालों को उबार लिया । यमुनाजल में रहने वाला कालिय नाग कितना विषैला था ? परन्तु इसने उसका भी मान मर्दन कर उसे बलपूर्वक दह से निकाल दिया और यमुनाजी का जल सदा के लिये विषरहित—अमृतमय बना दिया । नन्दजी! हम यह भी देखते हैं कि तुम्हारे इस साँवले बालक पर हम सभी व्रजवासियों का अनन्त प्रेम है और इसका भी हम पर स्वाभाविक ही स्नेह है। क्या आप बतला सकते हैं कि इसका क्या कारण है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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