श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 33 श्लोक 20-26
दशम स्कन्ध: त्रास्त्रिंशोऽध्यायः (33) (पूर्वार्ध)
परीक्षित्! यद्यपि भगवान् आत्माराम हैं—उन्हें अपने अतिरिक्त और किसी की भी आवश्यकता नहीं है—फिर भी उन्होंने जितनी गोपियाँ थीं, उतने ही रूप धारण किये और खेल-खेल में उनके साथ इस प्रकार विहार किया । जब बहुत देर तक गान और नृत्य आदि विहार करने के कारण गोपियाँ थक गयीं, तब करुणामय भगवान् श्रीकृष्ण ने बड़े प्रेम से स्वयं अपने सुखद करकमलों के द्वारा उनके मुँह पोंछे । परीक्षित्! भगवान् के करकमल और नखस्पर्श के गोपियों को बड़ा आनन्द हुआ। उन्होंने अपने उन कपोलों के सौन्दर्य से, जिनपर सोने के कुण्डल झिल-मिला रहे थे और घुँघराले अलकें लटक रहीं थीं, तथा उस प्रेमभरी चितवन से, जो सुधा से भी मीठी मुसकान से उज्जवल हो रही थी, भगवान् श्रीकृष्ण का सम्मान किया और प्रभु की परम पवित्र लीलाओं का गान करने लगीं । इसके बाद जैसे थका हुआ गजराज किनारों को तोड़ता हुआ हथिनियों के साथ जल में घुसकर क्रीडा करता है, वैसे ही लोक और वेद की मर्यादा का अतिक्रमण करने वाले भगवान् ने अपनी थकान दूर करने के लिये गोपियों के साथ जलक्रीडा करने के उद्देश्य से यमुना के जल में प्रवेश किया। उस समय भगवान् की वनमाला गोपियों के अंग की रगड़ से कुछ कुचल-सी गयी थी और उनके वक्षःस्थल की केसर से वह रँग भी गयी थी। उसके चारों ओर गुनगुनाते हुए भौंरें उनके पीछे-पीछे इस प्रकार चल रहे थे, मानों गन्धर्वराज उनकी कीर्ति का गान करते हुए पीछे-पीछे चल रहे हों । परीक्षित्! यमुनाजल में गोपियों ने प्रेमभरी चितवन से भगवान् की ओर देख-देखकर तथा हँस-हँसकर उन पर इधर-उधर से जल की खूब बौछारें डालीं। जल उलीच-उलीचकर उन्हें खूब नहलाया। विमानों पर चढ़े हुए देवता पुष्पों की वर्षा करके उनकी स्तुति करने लगे। इस प्रकार यमुनाजल में स्वयं आत्माराम भगवान् श्रीकृष्ण ने गजराज के समान जलविहार किया । इसके बाद भगवान् श्रीकृष्ण व्रजयुवतियों और भौंरों की भीड़ से घिरे हुए यमुनातट के उपवन में गये। वह बड़ा ही रमणीय था। उसके चारों ओर जल और स्थल में बड़ी सुन्दर सुगन्ध वाले फूल खिले हुए थे। उनकी सुवास लेकर मन्द-मन्द वायु चल रही थी। उसमें भगवान् इस प्रकार विचरण करने लगे, जैसे मदमत्त गजराज हथिनियों के झुंड के साथ घूम रहा हो । परीक्षित्! शरद् की वह रात्रि जिसके रूप में अनेक रात्रियाँ पूंजीभूत हो गयी थीं, बहुत ही सुन्दर थी। चारों ओर चन्द्रमा की बड़ी सुन्दर चाँदनी छिटक रही थी। काव्यों में शरद् ऋतु की जिन रस-सामग्रियों का वर्णन मिलता है, उन सभी से वह युक्त थी। उसमें भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी प्रेयसी गोपियों के साथ यमुना के पुलिन, यमुनाजी और उनके उपवन में विहार किया। यह बात स्मरण रखनी चाहिये कि भगवान् सत्यसंकल्प हैं। यह सब उनके चिन्मय संकल्प की ही चिन्मयी लीला है। और उन्होंने इस लीला में कामभाव को, उसकी चेष्टाओं को तथा उसकी क्रिया को सर्वथा अपने अधीन कर रखा था, उन्हें अपने-आपमें कैद कर रखा था ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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