श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 46 श्लोक 46-49
दशम स्कन्ध: षट्चत्वारिंशोऽध्यायः (46) (पूर्वार्ध)
उस समय गोपियाँ—कमलनयन भगवान् श्रीकृष्ण के मंगलमय चरित्रों का गान कर रही थीं। उनका वह संगीत दही मथने की ध्वनि से मिलकर और भी अद्भुत हो गया तथा स्वर्गलोक तक जा पहुँचा, जिसकी स्वर-लहरी सब ओर फैलकर दिशाओं का अमंगल मिटा देती है ।
जब भगवान् भुवनभास्कर का उदय हुआ, तब व्रजांगनाओं ने देखा कि नन्दबाबा के दरवाजे पर एक सोने का रथ खड़ा है। वे एक-दूसरे से पूछने लगीं ‘यह किसका रथ है ?’। किसी गोपी ने कहा—‘कंस का प्रयोजन सिद्ध करने वाला अक्रूर ही तो कहीं फिर नहीं आ गया है ? जो कमलनयन प्यारे श्यामसुन्दर को यहाँ से मथुरा ले गया था’ । किसी दूसरी गोपी ने कहा—‘क्या अब वह हमें ले जाकर अपने मरे हुए स्वामी कंस का पिण्डदान करेगा ? अब यहाँ उसके आने का क्या प्रयोजन हो सकता है ?’ व्रजवासिनी स्त्रियाँ इसी प्रकार आपस में बातचीत कर रही थीं कि उसी समय नित्यकर्म से निवृत होकर उद्धवजी आ पहुँचे ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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