श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 1-14

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दशम स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

कंस के हाथ से छूटकर योगमाया का आकाश में जाकर भविष्यवाणी करना

श्रीशुकदेवजी कहते हैं— परीक्षित्! जब वसुदेवजी लौट आये, तब नगर के बाहरी और भीतरी सब दरवाजे अपने-आप जो पहले की तरह बंद हो गये। इसके बाद नवजात शिशु के रोने की ध्वनि सुनकर द्वारपालों की नींद टूटी ।वे तुरंत भोजराज कंस के पास गये और देवकी को सन्तान होने की बात कही। कंस तो बड़ी आकुलता और घबराहट के साथ इसी बात की प्रतीक्षा कर रहा था । द्वारपालों की बात सुनते ही झटपट पलँग से उठ खड़ा हुआ और बड़ी शीघ्रता से सूतिकागृह की ओर झपटा। इस बार तो मेरे काल का ही जन्म हुआ है, यह सोंचकर वह विह्वल हो रहा था और यही कारण है कि उसे इस बात का भी ध्यान न रहा कि उसके बाल बिखरे हुए हैं। रास्ते में कई जगह वह लड़खड़ाकर गिरते-गिरते बचा । बंदीगृह पहुँचने पर सती देवकी ने बड़े दुःख और करुना के साथ अपने भाई कंस से कहा—‘मेरे हितैषी भाई! यह कन्या तो तुम्हारी पुत्रवधु के सामान है। स्त्रीजाति की है’ तुम्हें स्त्री की हत्या कदापि नहीं करनी चाहिए । भैया! तुमने दैववश मेरे बहुत-से अग्नि के समान तेजस्वी बालक मार डाले। अब केवल यही एक कन्या बची है, इसे तो मुझे दे दो । अवश्य ही मैं तुम्हारी छोटी बहिन हूँ। मेरे बहुत-से बच्चे मर गये हैं, इसलिए मैं अत्यन्त दीन हूँ। मेरे प्यारे और समर्थ भाई! तुम मुझ मन्दभागिनी को यह अंतिम सन्तान अवश्य दे दो’ ।

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! कन्या को अपनी गोद में छिपाकर देवकीजी ने अत्यन्त दीनता से साथ रोते-रोते याचना की। परन्तु कंस बड़ा दुष्ट था। उसने देवकीजी को झिड़ककर उनके हाथ से वह कन्या छीन ली । अपनी उस नन्हीं-सी नवजात भानजी के पैर पकड़कर कंस उसे बड़े जोर से एक चट्टान पर दे मारा। स्वार्थ ने उसके ह्रदय से सौहार्द को समूल उखाड़ फेंक था ।परन्तु श्रीकृष्ण की वह छोटी बहिन साधारण कन्या तो थी नहीं, देवी थी; उसके हाथ से छूटकर तुरंत आकाश में चली गयी और अपने बड़े-बड़े आठ हाथों में आयुध लिये हुए दीख पड़ी । वह दिव्य माला, वस्त्र, चन्दन और मणिमय आभूषणों से विभूषित थी। उसने हाथों में धनुष, त्रिशूल, बाण, ढाल, तलवार, शंख, चक्र और गदा—ये आठ आयुध थे । सिद्ध, चारण, गन्धर्व, अप्सरा, किन्नर और नागगण बहुत-सी भेँट की सामग्री समर्पित आरके उसकी स्तुति करने रहे थे। उस समय देवी ने कंस से कहा । ‘रे मूर्ख! मुझे मारने से तुझे क्या मिलेगा? तेरे पूर्वजन्म का शत्रु तुझे मारने के लिए किसी स्थान पर पैदा हो चुका है। अब तू व्यर्थ निर्दोष बालकों की हत्या न किया कर’। कंस से इस प्रकार कहकर भगवती योगमाया वहां से अन्तर्धान हो गयीं और पृथ्वी के अनेक स्थानों में विभिन्न नामों से प्रसिद्द हुईं ।

देवी की यह बात सुनकर कंस को असीम आश्चर्य हुआ। उसने उसी समय देवकी और वसुदेव को कैद से छोड़ दिया और बड़ी नम्रता से उनसे कहा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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