श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 42-46
दशम स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय (पूर्वार्ध)
वह विष्णु ही सारे देवताओं का स्वामी तथा असुरों का प्रधान द्वेषी है। परन्तु वह किसी गुफ़ा में छिपा रहता है। महादेव, ब्रम्हा और सारे देवताओं की जड़ वही है। उसको मार डालने का का उपाय यह है कि ऋषियों को मार डाला जाय’। श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! एक तो कंस की बुद्धि स्वयं ही बिगड़ी हुई थी; फिर उसे मन्त्री ऐसे मिले थे, जो उससे भी बढ़कर दुष्ट थे। इस प्रकार उनसे सलाह करके काल के फन्दे में फँसे हुए असुर कंस ने यही ठीक समझा कि ब्राम्हणों को ही मार डाला जाय । उसने हिंसाप्रेमी राक्षसों को संत पुरुषों की हिंसा करने का आदेश दे दिया। वे इच्छानुसार रूप धारण कर सकते थे। जब वे इधर-उधर चले गये, तब कंस ने अपने महल में प्रवेश किया । उन असुरों की प्रकृति थी रजोगुणी। तमोगुण के कारण उनका चित्त उचित और अनुचित के विवेक से रहित हो गया था। उनके सर पर मौत नाच रही थी। यही कारण है कि उन्होंने संतों से द्वेष किया । परीक्षित्! जो लोग महान संत पुरुषों का अनादर करते हैं, उनका यह कुकर्म उनकी आयु, लक्ष्मी, कीर्ति, धर्म, लोक-परलोक विषय-भोग और सब-के-सब कल्याण के साधनों को नष्ट कर देता है ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-