महाभारत शल्य पर्व अध्याय 50 श्लोक 64-69
पन्चाशत्तम (50) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
तब बृहस्पति आदि सब देवता और तपस्वी वहां आकर जैगीषव्य मुनि के तप की प्रशंसा करने लगे । तदनन्तर मुनि श्रेष्ठ नारद ने देवताओं से कहा-‘जैगीषव्य में तपस्या नहीं है; क्योंकि ये असित मुनि को अपना प्रभाव दिखाकर आश्चर्य में डाल रहे हैं’ । ऐसा कहने वाले ज्ञानी नारद मुनि को देवताओं ने महामुनि जैगीषव्य की प्रशंसा करते हुए इस प्रकार उत्तर दिया-‘आपको ऐसी बात नहीं कहनी चाहिये; क्योंकि प्रभाव, तेज, तपस्या और योग की दृष्टि से इन महात्मा से बढ़कर दूसरा काई नहीं है’ । धर्मात्मा जैगीषव्य तथा असित मुनि का ऐसा ही प्रभाव था। उन दोनों महात्माओं का यह श्रेष्ठ स्थान ही तीर्थ है । पारमार्थिक कर्म करने वाले महात्मा हलधर वहां भी स्नान करके ब्राह्मणों को धन-दान दे धर्म का फल पाकर सोम के महान् एवं उत्तम तीर्थ में गये ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सार स्वतोपाख्यान विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ ।
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