महाभारत सभा पर्व अध्याय 29 श्लोक 1-16

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एकोनत्रिंश (29) अध्‍याय: सभा पर्व (दिग्विजय पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकोनत्रिंश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन का पूर्व दिशा को जीतने के लिये प्रस्थान और विभिन्न देशों पर विजय पाना

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! इसी समय शत्रुओं का शोक बढ़ाने वाले भरतवंश शिरोमणि महाप्रतापी एवं पराक्रमी भीमसेन भी धर्मराज की आज्ञा ले, शत्रु के राज्य को कुचल देने वाली और हाथी, घोड़े एवं रथ से भरी हुई, कवच आदि से सुसज्जित विशाल सेना के साथ पूर्व दिशा को जीतने के लिये चले। नरश्रेष्ठ भीमसेन ने पहले पांचालों की महानगरी अहिच्छत्रा में जाकर भांति भाँति के उपायों से पांचाल वीरों को समझा बुझाकर वेश में किया। वहाँ से आगे जाकर उन भरतवंश शिरोमणि शूरवीर भीम ने गण्डक (गण्डकी नदी के तटवर्ती) और विदेह (मिथिला) देशों को थोड़े ही समय में जीतकर दशार्ण देश को भी अपने अधिकार में कर लिया। वहाँ दशार्ण नरेश सुधर्मा ने भीमसेन के साथ बिना अस्त्र शस्त्र के ही महान युद्ध किया। उन दोनों का वह कल्लयुद्ध रोंगटे खड़े कर देने वाला था। भीमसेन ने उस महामना राजा का यह अद्भुत पराक्रम देखकर महाबली सुधर्मा को अपना प्रधान सेनापति बना दिया। राजन! इसके बाद भयानक पराक्रमी भीमसेन पुन: विशाल सेना के साथ पृथ्वी को कँपाते हुए पूर्व दिशा की ओर बढ़े। जनमेजय! बलवानों में श्रेष्ठ वीरवर भीम ने अश्वमेध देश के राजा रोचमान को उनके सेवकों सहित बलपूर्वक जी लिया। उन्हें हराकर महापराक्रमी कुरुनन्दन कुन्तीकुमार भीम ने कोमल बर्तीव के द्वारा ही पूर्व देश पर विजय प्राप्त कर ली। तदनन्तर दक्षिण आकर पुलिन्दों के महान नगर सुकुमार और वहाँ के राजा सुमित्र को अपने अधीन कर लिया। जनमेजय! तत्पश्चात! भरत श्रेष्ठ भीम धर्मराज की आज्ञा से महापराक्रमी शिशुपाल के यहाँ गये। परंतप! चेदिराज शिशुपाल ने भी पाण्डुकुमार भीम का अभिप्राय जानकर नगर से बाहर आ स्वागत सत्कार के साथ उन्हें अपनाया। महाराज! कुरुकुल और चेदिकुल के वे श्रेष्ठ पुरुष परस्पर मिलकर दोनें ने दोनों कुलों के कुशल प्रश्न पूछे। राजन्! तदनन्तर चेदिराज ने अपना राष्ट्र भीमसेन को सौंपकर हँसते हुए पूछा- ‘अनघ! यह क्या करते हो?’ तब भीम ने उससे धर्मराज जो कुछ करना चाहते थे, वह सब कह सुनाया। तदनन्तर राजा शिशुपाल ने उनकी बात मानकर कर देना स्वीकार कर लिया। राजन! उसके बाद शिशुपाल से सम्मानित हो भीमसेन अपनी सेना और सवारियों के साथ तेरह दिन वहाँ रह गये। तत्पश्चात वहाँ से विदा हुए।

इस प्रकार श्रीमहाभारत सभा पर्व के अन्तर्गत दिग्विजय पर्व में भीमदिग्विजय विषयक उन्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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