महाभारत सभा पर्व अध्याय 30 श्लोक 1-23

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:५३, २४ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==त्रिंश (30) अध्‍याय: सभा पर्व (दिग्विजय पर्व)== <div style="text-align...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

त्रिंश (30) अध्‍याय: सभा पर्व (दिग्विजय पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

भीम का पर्वू दिशा के अनेक देशों तथा राजाओं को जीतकर भारी धन सम्पत्ति के साथ इन्द्रप्रस्थ में लौटना

वैशम्पायनजी कहत हैं- जनमेजय! तदनन्तर शत्रुओं का दमन करने वाले भीमसेन ने कुमार देश के राजा श्रेणिमान तथा कोसलराज वृहद्वल को परास्त किया। इसके बाद आयोध्या के धर्मज्ञ नरेश महाबली दीर्घयज्ञ को पाण्डव श्रेष्ठ भीम ने कोमलतापूर्ण बर्ताव से वश में कर लिया। तत्पश्चात शक्तिशाली पाण्डुकुमार ने गोपालकक्ष और उत्तर कोसल देश को जीतकर मल्लराष्ट्र के अधिपति पार्थिव को अपापे अधीन कर लिया। इसके बाद हिमालय के पास जाकर बलवान भीम ने सारे जलोद्भव देश पर थोड़े ही समय में अधिकार प्राप्त कर लिया। इस प्रकार भरतवश भूषण भीमसेन ने अनेक देश जीते और भल्लाट के समीपवर्ती देशों तथा शुक्तिमान पर्वत पर भी विजय प्राप्त की। बलवानों में श्रेष्ठ महापराक्रमी तथा भयंकर पुरुषार्थ प्रकट करने वाले पाण्डुकुमार महाबाहु भीमसेन ने समर में पीठ न दिखाने वाले काशिराज सुबाहु को बलपर्वूक हराया। इसके बाद पाण्डपुपुत्र भीम ने सुपार्श्व के निकट राजराजेश्वर क्रथ को, जो युद्ध में बलपूर्वक उनका सामना कर रहे थे, हरा दिया। तत्पश्चात महातेजस्वी कुन्तीकुमार ने मत्स्य, महाबली मलद, अनघ और अभय नामक देशों को जीकर पशुभूमि (पशुपतिनाथ के निकटवर्ती स्थान नेपाल) को भी सब ओर से जी लिया। वहाँ से लौटकर महाबाहु भीम ने मदधार पर्वत और सोमधेय निवासियों को परास्त किया। इसके बाद बलवान् भीम ने उत्तराभिमुख यात्रा की और वत्सभूमि पर बलपूर्वक अधिकार जमा लिया। फिर क्रमश: भोगों के स्वामी, निषादों के अधिपति तथा मणिमान् आदि बहुत से भूपालों को अपने धिकार में कर लिया। तदनन्तर दक्षिण मल्लदेश तथा भोगवान पर्वत को भीमसेन ने अधिक प्रयास किये बिना ही वेग पूर्वक जीत लिया। शर्मक और वर्मकों को उन्होंने समझा बुझाकर ही जीत लिया। विदेह देश के राजा जनक को भी पुरुषसिंह भीम ने अधिक उग्र प्रयास किये बिना ही परास्त किया। फिर शकों और बर्बरों पर छल से विजय प्राप्त कर ली। विदेह देश में ही ठहरकर कुन्तीकुमार भीम ने इन्द्रपर्व तके निकटवर्ती सात किरात राजाओं को जीत लिया। इसके बाद सुह्य और प्रसुह्य देश के राजाओं को , जिनके पक्ष में बहुत लोग थे, अत्यन्त पराक्रमी और बलवान् कुन्तीकुमार भीम युद्ध में परास्त करके मगध देश को चल दिये। मार्ग में दण्ड-दण्डधार तथा अन्य राजाओं को जीतकर उन सबके साथ वे गिरिव्रज नगर में आये । वहाँ जरासंधकुमार सहदेव को सान्त्वना देकर उसे कर देने की शर्त पर उसी राज्य पर प्रतिष्ठित कर दिया और उन सबके साथ बलवान भीम ने कर्ण पर चढ़ाई की। पाण्डवश्रेष्ठ भीम ने पृथ्वी को कम्पित सी करते हुए चतुरंगिणी सेना साथ ले शत्रुघाती कर्ण के साथ युद्ध छेड़ दिया। भारत! उस युद्ध में कर्ण को परास्त करके अपने वश में कर लेने के पश्चात बलवान भम ने पर्वतीय राजाओं पर विजय प्रात की। तदनन्तर पाण्डुनन्दन भीमसेन ने मोदागिरि के अत्यन्त बलिष्ठ राजा को अपनी भुजाओं के बले से महासमर में मार गिराया। महाराज! तत्पश्चात भीमसेन पुण्डक देश के अधिपति माहबली वीर राजा वासुदेव के साथ, जो कोसी नदी के कछार में रहने वाले तथा महान् तेजस्वी थे, जो भिड़े। वे दोनों ही बलवान एवं दु:सह पराक्रमवाले वीर थे। भीम ने विपक्षी वासुदेव (पोण्ड्रक) को युद्ध में हराकर वंगदेश के राजा पर आक्रमण किया।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।