महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 59 श्लोक 15-21

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एकोनषष्टितम (59) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 15-21 का हिन्दी अनुवाद

भरतश्रेष्ठ! उस समय देवता, गन्धर्व और ऋषि अदृश्य रूप से श्रीकृष्ण के निकट आकर उनकी स्तुति करने लगे। देवता और गन्धर्व बोले- भगवन्! आप समस्त धर्मों के साधक और असुरों के विनाशक हैं। आप ही स्त्रष्टा, आप ही सृज्य जगत् और आप ही उसके आधार हैं। आप ही सबके कारण तथा धर्म और वेद के ज्ञाता हैं। देव! आप अपनी माया से जो कुछ करते हैं, हम लोग उसे नहीं जान पाते हैं। हम केवल आपको जानते हैं। आप ही सबके शरणदाता और परमेश्वर हैं। गोविन्द! आप ब्रह्मा आदि को सामीप्य और शरण प्रदान करने वाले हैं। आपको नमस्कार है। वैशम्पायनजी कहते हैं- इस प्रकार मानवेतर प्राणियों-देवताओं और गन्धर्वों द्वारा जब देवकीनन्दन श्रीकृष्ण की स्तुति और पूजा की जार ही थी, उस समय वह पर्वतराज रैवतक इन्द्र भवन के समान जान पड़ता था। तदन्तर सबसे सम्मानित हो भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने सुन्दर भवन में प्रवेश किया और सात्य किभी अपने घर में गये। जैसे इन्द्र दानवों पर महान् पराक्रम प्रकट करके आये हों, उसी प्रकार दुष्कर कर्म करके दीर्घकाल के प्रवास से प्रसन्नचित होकर लौटे हुए भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने भवन में प्रवेश किया। जैसे देवता देवराज इन्द्र की अगवानी करते हैं, उसी प्रकार भोज, कृष्ण और अन्धकवंश के यादवों ने अपने निकट आते हुए महात्मा श्रीकृष्ण का आगे बढ़कर स्वागत किया। मेधावी श्रीकृष्ण ने उन सबका आदर करके उनका कुशल समाचार पूछा और प्रसन्नतापूर्वक अपने माता-पिता के चरणों में प्रणाम किया। उन दोनों ने उन महाबाहु श्रीकृष्ण को अपनी छाती से लगा लिया और मीठे वचनों द्वारा उन्हें सांत्वना दी। इसके बाद सभी वृष्णिवंशी उनको घेरकर आसपास बैठ गये। महातेजस्वी श्रीकृष्ण जब हाथ-पैर धोकर विश्राम कर चुके, तब पिता के पूछने पर उन्होंने उस महायुद्ध की सारी घटना कह सुनायी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकापर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में श्रीकृष्ण का द्वारकाप्रवेशविषयक उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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