महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 77 श्लोक 19-32
सप्तसप्ततितम (77) अध्याय: आश्वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)
गधे के समान रंग और लाल रंग के सम्मिश्रण से जो रंग हो सकता है, वैसे वर्णवाले मेघ आकाश को घेरकर रक्त ओर मांस की वर्षा करने लगे । उनमें इन्द्रधनुष का भी दर्शन होता था और बिजलियां भी कौंधती थीं। भरतश्रेष्ठ ! वीर अर्जुन के उस समय शत्रुओं की बाण–वर्षा से आच्छादित हो जाने पर ऐसे–ऐसे उत्पात प्रकट होने लगे । वह अदभुत–सी बात हुई। उस बाण समूह के द्वारा सब ओर से आच्छादित हुए अर्जुन पर मोह छा गया । उस समय उनके हाथ से गाण्डीव धनुष और दस्ताने गिर पड़े। महारथी अर्जुन जब मोहग्रस्त एवं अचेत हो गये, उस समय भी सिंधु देशीय योद्धा उन पर वेगपूर्वक महान बाण समूह की वर्षा करते रहे। अर्जुन को मोह के वशीभूत हुआ जान सम्पूर्ण देवता मन–ही–मन संत्रस्त हो गये और उनके लिये शान्ति का उपाय करने लगे। फिर तो समस्त देवर्षि, सप्तर्षि और ब्रह्मर्षि मिलकर बुद्धिमान अर्जुन की विजय के लिये मन्त्र–जप करने लगे। पृथ्वीनाथ ! तदनन्तर देवताओं के प्रयत्न से अर्जुन का तेज पुन: उद्दीपन हो उठा और उत्तम अस्त्र-विद्या के ज्ञाता परम बुद्धिमान धनंजय संग्राम भूमि में पर्वत के समान अविचल भाव से खड़े हो गये। फिर तो कौरवनन्दन अर्जुन अपने दिव्य धनुष की प्रत्यंचा खींची। उस समय उससे बार–बार मशीन की तरह जोर–जोर से टंकार–ध्वनि होने लगी। इसके बाद जैसे इन्द्र पानी की वर्षा करते हैं, उसी तरह प्रभावशाली पार्थ ने अपने धनुष द्वारा शत्रुओं पर बाणों की झड़ी लगा दी। फिर तो पार्थ के बाणों से आच्छादित हो समस्त सैन्धव योद्धा टिड्डियों से ढके हुए वृक्षों की भांति अपने राजा सहित अदृश्य हो गये। कितने ही गाण्डीव की टंकार–ध्वनि से ही थर्रा उठे। बहुतेरे भय से व्याकुल होकर भाग गये और अनेक सैन्धव योद्धा शोक से आतुर होकर आंसू बहाने एवं शोक करने लगे। राजन ! उस समय महाबली पुरुष सिंह अर्जुन अलात चक्र की भांति घूम–घूम कर सारे सैन्धवों पर बाण–समूहों की वर्षा करने लगे। शत्रु सूदन अर्जुन ने वज्रधारी महेन्द्र की भांति सम्पूर्ण दिशाओं से इन्द्र जाल के समान बाणों का जाल–सा फैला दिया। जैसे शरत्काल के सूर्य मेघों की घटा को छिन्न–भिन्न करके प्रकाशित होते हैं, उसी प्रकार कौरवश्रेष्ठ अर्जुन अपने बाणों की वृष्टि से शत्रु सेना को विदीर्ण करके अत्यन्त शोभा पाने लगे।
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