महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 90 श्लोक 96-110

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नवतितम (90) अध्याय: आश्‍वमेधिकपर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिकपर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 96-110 का हिन्दी अनुवाद

‘श्रद्धापूर्वक दान देने वाले मनुष्‍य में यदि एक हजार देने की शक्‍ति हो तो वह सौ का दान करे, सौ देने की शक्‍ति वाला दस का दान करे, तथा जिसके पास कुछ न हो, वह अपनी शक्‍ति के अनुसार जल ही दान कर दे तो इन सबका फल बराबर माना गया है।‘विप्रवर ! कहते हैं, राजा रन्‍तिदेव के पास जब कुछ भी नहीं रह गया, तब उन्‍होंने शुद्ध हृदय से केवल जल का दान किया था । इससे वे स्‍वर्ग लोक में गये थे।‘तात ! अन्‍याय पूर्वक प्राप्‍त हुए द्रव्‍य के द्वारा महान् फल देने वाले बड़े – बड़े दान करने से धर्म को उतनी प्रसन्‍नता नहीं होती, जितनी न्‍यायोपार्जित थोड़े – से अन्‍न का भी श्रद्धापूर्वक दान करने से उन्‍हें प्रसन्‍नता होती है । ‘राजा नृग ने ब्राह्मणों को हजारों गौएं दान की थीं ; किंतु एक ही गौ दूसरे की दान कर दी, जिसके कारण अन्‍यायत: प्राप्‍त द्रव्‍य का दान करने के कारण उन्‍हें नरक में जाना पड़ा।‘उशीनर के पुत्र उत्‍तम व्रत का पालन करने वाले राजा शिबि श्रद्धापूर्वक अपने शरीर का मांस देकर भी पुण्‍यात्‍माओं के लोकों में अर्थात् स्‍वर्ग में आनन्‍द भोगते हैं।‘विप्रवर ! मनुष्‍यों के लिये धन ही पुण्‍य का हेतु नहीं है । साधु पुरुष अपनी शक्‍ति के अनुसार सुगमतापूर्वक पुण्‍य का अर्जन कर लेते हैं । न्‍याय पूर्वक संचित किये हुए अन्‍न के दान से जैसा उत्‍तम फल प्राप्‍त होता है, वैसा नान प्रकार के यज्ञों का अनुष्‍ठान करने से भी नहीं सुलभ होता।‘मनुष्‍य क्रोध से अपने दान के फल को नष्‍ट कर देता है । लोभ के कारण वह स्‍वर्ग में नहीं जाने पाता । न्‍यायोपार्जित धन से जीवन – निर्वाह करने वाला और दान के महत्‍व को जानने वाला पुरुष दान एवं तपस्‍या के द्वारा स्‍वर्गलोक प्राप्‍त कर लेता है।‘तुमने जो यह दान जनित फल प्राप्‍त किया है, इसकी समता प्रचुर दक्षिणा वाले बहुसंख्‍यक राजसूय और अनेक अश्‍वमेध – यज्ञों द्वारा भी नहीं हो सकती । तुमने सेर भर सत्‍तू का दान करके अक्षय ब्रह्मलोक को जीत लिया है।‘विप्रवर ! अब तुम सुख पूर्वक रजोगुण रहित ब्रह्मलोक में जाओ । द्विजश्रेष्‍ठ ! तुम सब लोगों के लिये यह दिव्‍य विमान उपस्‍थित है।‘ब्रह्मन ! मेरी ओर देखो, मैं धर्म हूं । तुम सब लोग अपनी इच्‍छा के अनुसार इस विमान पर चढ़ो । तुमने अपने इस शरीर का उद्धार कर दिया और लोक में भी तुम्‍हारी अविचलित कीर्ति बनी रहेगी । तुम पत्‍नी, पुत्र और पुत्रवधु के साथ स्‍वर्ग लोक को जाओ’ । धर्म क ऐसा कहने पर वे उंछवृत्‍ति वाले ब्राह्मण देवता अपनी पत्‍नि, पुत्री और पुत्रवधू के साथ विमान पर आरूढ़ हो स्‍वर्ग लोक को चले गये। ‘स्‍त्री, पुत्र और पुत्रवधू के साथ वे धर्मज्ञ ब्राह्मण जब स्‍वर्ग लोक को चले गये, तब मैं अपनी बिल से बाहर निकला।तदनन्‍तर सत्‍तू की गन्‍ध सूंघने, वहां गिरे हुए जल की कीच से सम्‍पर्क होने, वहां गिरे हुए दिव्‍य पुष्‍पों को रौंदने और उन महात्‍मा ब्राह्मण के दान करते समय गिरे हुए अन्‍न के कणों में मन लगाने से तथा उन उंछवृत्‍तिधारी ब्राह्मण की तपस्‍या के प्रभाव से मेरा मस्‍तक सोने का हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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