महाभारत सभा पर्व अध्याय 38 भाग 16

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:१४, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==अष्टात्रिंश (38) अध्‍याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)== <...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

अष्टात्रिंश (38) अध्‍याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 16 का हिन्दी अनुवाद

इस प्रकार धर्मात्माओं में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजी ने लोकहित के लिये बहुत से कार्य करके विधिपूर्वक राज्य का पालन किया। उन्होंने दस अश्वमेघ यज्ञों का अनुष्ठान किया और सरयू तट के जारुधि प्रदेश को विघ्न बाधाओं से रहित कर दिया। श्रीरामचन्द्रजी के शासन काल में कभी कोई अमंगल की बात नहीं सुनी गयी। उस समय प्राणियों की अकाल मृत्यु नहीं होती थी और किसी को भी धन की रक्षा आदि के निमित्त भय नहीं प्राप्त होता था। विधवाओं का करुण क्रन्दन नहीं सुना जाता था तथा स्त्रियाँ अनाथ नहीं होती थीं। श्रीरामचन्द्रजी के राज्य शासन काल में सम्पूर्ण जगत् संतुष्ट था। किसी भी वर्ण के लोग वर्ण सकंर संतान नहीं उत्पन्न करते थे। कोई मनुष्य ऐसी जमीन के लिये कर नहीं देता था, जो जोतने बोने के काम में न आती हो। बूढ़े लोग बालकों का अन्त्येष्टि संस्कार नहीं करते थे (उनके सामने ऐसा अवसर ही नहीं आता था)। वैश्य लोग क्षत्रियों की परिचर्चा करते थे और क्षत्रिय लोग भी वैश्यों को कष्ट नहीं होने देते थे। पुरुष अपनी पत्नियों की अवहेलना नहीं करते थे और पत्नियों भीपतियों की अवहेलना नहीं करती थीं। श्रीरामचन्द्र जी के राज्य शासन करते समय लोक में खेती की उपज म नहीं होती थी। लोग सहस्त्र पुत्रों से युक्त होकर सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते थे। श्रीराम के राज्य शान काल में सब प्राणी नीरोग थे। श्रीरामचन्द्रजी के राज्य में इस पृथ्वी पर ऋषि, देवता और मनुष्य साथ-साथ रहते थे। राजन्! भूमिपाल श्रीरघुनाथजी जिन दिनों सारी पृथ्व का शासन करते थे, उस समय उनके राज्य में लोग पूर्णत: तृप्ति का अनुभव करते थे। धर्मात्मा राज राम के राज्य में पृथ्वी पर सब लोग तपस्या में ही लगे रहते थे और सब के सब धर्मानुरागी थी। श्रीराम के राज्य शासन काल में कोई भी मनुष्य अधर्म में प्रवृत्त नहीं होता था। सबके प्राण और अपान समवृत्ति में स्थित थे। जो पुराणवेत्ता विद्वान हैं, वे इस विषय में निम्नांकित गाथा गाया करते हैं- ‘भगवान श्रीराम की अंगकान्ति श्याम है, युवावस्था हैं, उनके नेत्रों में कुछ कुछ लाली है। वे गजराज जैसे पराक्रमी हैं। उनकी भुजाएँ घटनों तक लंबी हैं। मुख बहुत सुन्दर हैं। कंधे सिंह के समान हैं और वे महान बलशाली हैं। उन्होंने राज्य और भोग पाकर ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का शासन किया। प्रजाजनों में ‘राम राम राम’ इस प्रकार केवल राम की ही चर्चा होती थी। राम के राज्य शासन काल में यह सारा जगत राममय हो रहा था। उ समय के द्विज ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के ज्ञान में शून्य नहीं थे। इस प्रकार मनुष्यों में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्र जी ने दण्डकारण्य में निवास करके देवताओं का कार्य सिद्ध किया और पहले के अपराधी पुलस्त्यनन्दन रावण को, जो देवताओं, गन्धर्वों और नागों का शत्रु था, युद्ध में मारा गिराया। इक्ष्वाकु कुल का अभ्युदय करने वाले महाबाहु श्रीराम महान् पराक्रमी, सर्वगुण सम्पन्न और अपने तेज से देदीप्यमान थे। वे इसी प्रकार सेवकों सहित रावण का वध रके राज्य पालन के पश्चात साकेत लोक में पधारे। इस प्रकार परमात्मा दशरथ नन्दन श्रीराम के अवतार का वर्णन किया गया। राजन्! तदनन्तर अब अठ्ठाईसवें द्वापर में भयभीतों को अभय देने वाले श्रीवत्सविभूषित महाबाहु भगवान श्रीकृष्ण के रूप में श्रीविष्णु का अवतार हुआ है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।