महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 56-76

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द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 56-76 का हिन्दी अनुवाद

रण भूमि में द्रोण पुत्र को अपनी ओर आते देख महारथी सात्‍यकि ने उसे पुनः रथहीन एवं युध्‍द से विमुख कर दिया । राजन ! सात्‍यकि का यह पराक्रम देख पाण्‍डव बडे जोर जोर शंख बजाने और सिंहनाद करने लगे । इस प्रकार उसे रथहीन करके सत्‍य पराक्रमी सात्‍यकिने वृषसेन की सेना के तीन हजार विशाल रथों को नष्‍ट कर दिया । तदन्‍तर कृपाचार्य की सेना के पंद्रह हजार हाथियों का वध कर डाला; इसी तरह शकुनि के पचास हजार घोडों को भी उन्‍होंने मार गिराया । महाराज ! तब पराक्रमी अश्‍वत्‍थामा रथ पर आरूढ हो सात्‍यकि पर क्रोध करके उनका वध करने की इच्‍छा से आगे बढा । शत्रुदमन नरेश ! अश्‍वत्‍थामा को फिर आया देख सात्‍यकिने अत्‍यन्‍त क्रूर तीखे बाणों द्वारा उसे बारम्‍बार विदीर्ण किया । जब युयुधान ने नाना प्रकार के चिन्‍ह वाले बाणों द्वारा महाधनुर्धर अश्‍वत्‍थामा को अत्‍यन्‍त घायल कर दिया, तब उसने अमर्ष में भरकर हॅसते हुए कहा । ‘शिनिपौत्र ! मैं जानता हॅू, आचार्यघाती धृष्‍टप्रधुम्‍न के प्रति तुम्‍हारा विशेष सहयोग एवं पक्षपात है; परन्‍तु मेरे चंगुल में फॅसें हुए इस धृष्‍टप्रधुम्‍न और अपने को भी तुम बचा नहीं सकोगे । ‘पाण्‍डवों और वृष्णिवंशियों के पास जितना भी बल है, वह सब यहीं लगा दो तो भी सोमकों का संहार कर डालॅूगा’। ऐसा कहकर द्रोणकुमार अश्‍वत्‍थामा सात्‍यकि पर सूर्य की किरणों के समान तेजस्‍वी तथा अत्‍यन्‍त तीखा उत्‍तम बाण छोड दिया; मानो इन्‍द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया हो । उसका चलाया हुआ वह बाण सात्‍यकि के शरीर को कवचसहित विदीर्ण करके पृथ्‍वी को चीरता हुआ उसके भीतर उसी प्रकार घुस गया, जैसे फुफकारता हुआ सर्प बिल में समा जाता है । कवच छिन्‍न भिन्‍न हो जाने से शूरवीर सात्‍यकि अंकुशों की मार खाये हुए हाथी के समान व्‍यथित हो उठे उनके घावों से अधिक रक्‍त बह रहा था। वे शिथिल एवं खून से लथपथ हो धनुष बाण छोडकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये। तब सारथि तुरन्‍त ही उन्‍हें द्रोण पुत्र के पास से दूसरे रथी के पास हटा ले गया । तदन्‍तर शत्रुओं को संताप देने वाले अश्‍वत्‍थामा ने सुन्‍दर पंख एवं झुकी हुई गॉठ वाले दूसरे बाण से धृष्‍टप्रधुम्‍न की दोनों भौंहों के बीच में गहरा आघात किया । पान्‍चाल राजकुमार धृष्‍टप्रधुम्‍न पहलेही बहुत घायल हो चुका था। फिर पीछे भी अत्‍यन्‍त पीडित हो वह रथ की बैठक में घम्‍म से बैठ गया और ध्‍वजा पर अपने शरीर को टेक दिया । राजन ! जैसे सिंह हाथी को सताता है, उसी प्रकार धृष्‍टप्रधुम्‍न को अश्‍वत्‍थामा के बाणों से पीडित देखकर पाण्‍डव पक्ष से पॉच शूरवीर महारथी बडे वेग से वहॉ आ पहॅुचे । उनके नाम इस प्रकार हैं – किरीटधारी अर्जुन, भीमसेन, पौरव वृदध्‍क्षत्र, चेदिदेश के युवराज तथा मालव नरेश सुदर्शन । इन सब वीरों ने हाहाकार करते हुए हाथों में धनुष लेकर वीर अश्‍वत्‍थामा को चारों ओर से घेर लिया । उन सावधान रथियों ने बीसवें पग पर अमर्षशील गुरूपुत्र् को पा ि‍लया और सब ओर से पॉच पॉच बाणों द्वारा एक साथ ही उस पर चोट की । तब द्रोण कुमार ने विषैले सर्पो के समान पचीस तीखे बाणों द्वारा एक साथ ही उनके पचीसों बाणों को काट डाला ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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