महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 200 श्लोक 77-92

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०६:३१, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्विशततम (200) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्विशततम अध्याय: श्लोक 77-92 का हिन्दी अनुवाद

इसके बाद द्रोण पुत्र् ने सात तीखे बाणों से पौरव को पीडित कर दिया। फिर तीन बाणों से मालवनरेश को, एक से अर्जुन को और छः बाणों द्वारा भीमसेन को घायल कर दिया । राजन ! तत्‍पश्‍चात उन सब महारथियों ने एक साथ और अलग अलग भी शिलापर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणों द्वारा द्रोण कुमार को घायल करना आरम्‍भ किया । चेदिदेश के युवराज ने बीस, अर्जुन आठ तथा अन्‍य सब लोगों ने तीन तीन बाणों द्वारा द्रोण पुत्र को बींध डाला । तदन्‍तर द्रोण पुत्र ने छः बाणों से अर्जुन को, दस बाणों द्वारा भगवान् श्रीकृष्‍ण को, पॉच से भीम को, चार से चेदिदेश के युवराज को तथा दो दो बाणों द्वारा क्रमशः मालवनरेश तथा पौरव को घायल कर दिया । इतना ही नहीं, भीमसेन के सारथि को छः तथा उनके धनुष और ध्‍वज को दो बाणों से बींधकर पुनः बाणों की वर्षा द्वारा अर्जुन को घायल करके अश्‍वत्‍थामा ने घोर सिंहनाद किया । द्रोण कुमार उन पानीदा धारवाले तीखे बाणों को आगे और पीछे भी चला रहा था। उसके उने भयानक बाणों से पृथ्‍वी,आकाश, अन्‍तरिक्ष, दिशाऍ और विदिशाऍ भी आच्‍छादित हो गयी थी। उस युध्‍द में इन्‍द्र के समान पराक्रमी एवं प्रचण्‍ड तेजस्‍वी अश्‍वत्‍थामा ने अपने रथ के निकट आये हुए मालवराज सुदर्शन की इन्‍द्रध्‍वज के तुल्‍य प्रकाशित होने वाली दोनेां भुजाओं तथा मस्‍तक को तीन बाणेां द्वारा एक साथ ही काट डाला । फिर उसने पौरव को रथ शक्ति से घायल करके अपने बाणों द्वारा उनके रथ के तिल के बराबर बराबर टुकडे कर डाले और सुन्‍दर चन्‍दन चर्चित्‍ उनकी दोनों भुजाओं को काटक्‍र एक भल्‍ल्‍ के द्वारा उनके मस्‍तक को भी धड से अलग कर दिया । तत्‍पश्‍चात शीघ्रता करने वाले अश्‍वत्‍थामा ने प्रज्‍वलित अग्नि के समान तेजस्‍वी बाणों द्वारा नीलकमल की माला के समान कान्तिवाले नवयुवक चेदिदेशीय युवराज को हठपूर्वक घायल करके उन्‍हें घोडों और सारथि सहित मौत के हवाले कर दिया । मालवनरेश सुदर्शन, पुरूदेश के अधिपति वृध्‍दक्षत्र तथा चेदिदेश के युवराज को अपनी ऑखों के सामने द्रोणपुत्र् के हाथ से मारा गया देख पाण्‍डु कुमार महाबाहु भीमसेन को बडा भारी क्रोध हुआ । फिर तो शत्रुओं को संताप देने वाले भीमसेन ने क्रोध में भरे हुए विषधर सर्पो के समान सैकडों तीखे बाणों द्वारा समरागण में द्रोणपुत्र् अश्‍वत्‍थामा को आच्‍छादित कर दिया । तब महातेजस्‍वी अमर्षशील द्रोण कुमार ने उस बाण वर्षा को नष्‍ट करके भीमसेन को पैने बाणों से बींध डाला । यह देख महाबली महाबाहु भीमसेन ने युध्‍द स्‍थल में एक क्षुरप्र से अश्‍वत्‍थामा का धनुष काटकर पंखदार बाण से उसको भी घायल कर दिया । इसके बाद महामनस्‍वी द्रोणपुत्र् ने उस कटे हुए धनुष को फेंक कर दूसरा धनुष ले लिया और भीमसेन को अनेक बाण मारे । अश्‍वत्‍थामा और भीमसेन दोनों वीर महान् बलवान् एवं पराक्रमी थे। वे समरभूमि में वर्षा करने वाले दो बादलों के समान परस्‍पर बाणों की बौछार करने लगे । जैसे मेघों की घटाऍ सूर्य को ढक लेती हैं, उसी प्रकार भीमसेन के नाम से अंकित और सानपर चढाकर तेज किये हुए सुन‍हरी पॉखवाले बाणों ने द्रोणपुत्र् को आच्‍छादित कर दिया ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।