महाभारत सभा पर्व अध्याय 41 श्लोक 34-40
एकोनचत्वारिंश (41) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
भीष्म! हंस पर विश्वास हो जाने के कारण वे सभी पक्षी अपने अण्डे उसके पास ही रखकर समुद्र के जल में गोते लगाते और विचरते थे, परंतु वह पापी हंस उन सबके अण्डे खा जाता था। वे बेचारे पक्षी असावधान थे और वह अपना काम बनाने के लिये सदा चाकन्ना रहता था। तदनन्तर जब वे अण्डे नष्ट होने लगे, तब एक बुद्धिमान पक्षी को हंस पर कुछ संदेह हुआ और एक दिन उसने उसकी सारी करतूत देख भी ली। हंस का यह पापपूणर्् कृत्य देखकर वह पक्षी दु:ख से अत्यन्त आतुर हो उठा और उसने अन्य सब पक्षियों से सारा हाल कह सुनाया। कुरुवंशी भीष्म! तब उन पक्षियों ने निकट जाकर सब कुछ प्रत्यक्ष देख लिया और धर्मात्मा का मिथ्या ढोंग बनाये हुए उस हंस को मार डाला। तुम भी उस हंस के ही समान हो, अत: ये सब नरेश अत्यन्त कुपित होकर आज तुम्हें उसी तरह मार डालेंगे, जैसे उन पक्षियों ने हंस की हत्या कर डाली थी। भीष्म! इस विषय में पुराणवेत्ता विद्वान एक गाथा गाया करते हैं। भरत कुलभूषण! मैं उसे भी तुम को भली भाँति सुनाये देता हूँ।। ‘हंस! तुम्हारी अन्तरात्मा रागादि दोषों से दूषित है, तुम्हारा य अण्ड भक्षणरूप अपवित्र कर्म तुम्हारी इस धर्मोपदेशमयी वाणी के सर्वथा विरुद्ध है’।
« पीछे | आगे » |