महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 202 श्लोक 34-53

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द्वयधिकद्विशततम (202) अध्याय: द्रोणपर्व ( नारायणास्‍त्रमोक्ष पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्वयधिकद्विशततम अध्याय: 34-53 श्लोक का हिन्दी अनुवाद

जो मेघों के अधिपति तथा सम्‍पूर्ण भूतों के स्‍वामी हैं, उन्‍हें नमस्‍कार है। वृक्षों के पालक और गौओ के अधिपति रूप आपको नमस्‍कार है । जिनका शरीर वृक्षों से आच्‍छादित है, जो सेना के अधिपति और शरीर के मध्‍यवर्ती हैं, यजमान रूप से अपने हाथ में स्‍त्रुवा धारण करते हैं, जो दिव्‍य स्‍वरूप्‍, धनुर्धर और भृगुवंशी परशुराम स्‍वरूप हैं, उनको नमस्‍कार है । जिनके बहुत से रूप हैं, जो इस विश्‍व के पालक होकर भी मॅूजका कौपीन धारण करते हैं, जिनके सहस्‍त्रों सिर, सहस्‍त्रों नेत्र, सहस्‍त्रों भुजाऍ और सहस्‍त्रों पैर हैं, उन भगवान शंकर को नमस्‍कार है । कुन्‍तीनन्‍दन ! तुम उन्‍हीं वरदायक भुवनेश्‍वर, उमा, वल्‍लभ, त्रिनेत्रधारी, दक्षयज्ञविनाशक, प्रजापति, व्‍यग्रता रहित और अविनाशी भगवान भूतनाथ की शरण में जाओ । जो जटाजूटधारी हैं, जिनका घूमना परम श्रेष्‍ठ है, जो श्रेष्‍ठ नाभि से सुशोभित, ध्‍वजा पर वृष का चिन्‍ह धारण करने वाले, वृषद्रर्प, वृषपति, धर्म को ही उच्‍च्‍तम मानने वाले तथा धर्म से भी सर्वश्रेष्‍ठ हैं, जिनके ध्‍वज में सॉडका चिन्‍ह अंकित है, जो धर्मात्‍माओं में उदार, धर्मस्‍वरूप, वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले, श्रेष्‍ठ आयुष और श्रेष्‍ठ बाण से युक्‍त्‍ा, धर्मविग्रह तथा धर्म के ईश्‍वर, उन भगवान की मैं शरण ग्रहण करता हॅू । कोटि कोटि ब्रहमाण्‍डों को धारण करने के कारण जिनका उदर और शरीर विशाल हैं, जो व्‍याघ्रचर्म ओढा करते हैं, जो लोकेश्‍वर, वरदायक, मुण्डितमस्‍तक, ब्राहमणहितैषी तथा ब्राहमण के प्रिय हैं। जिनके हाथ में त्रिशूल, ढाल, तलवार और पिनाक आदि अस्‍त्र शोभा पाते हैं, जो वरदायक, प्रभु, सुन्‍दर शरीरधारी, तीनों लोको के स्‍वामी तथा साक्षात् ईश्‍वर हैं, उन चीरवस्त्रधारी,शरणागतवत्‍सल भगवान शिव की मैं शरण लेता हॅू । कुबेर जिनके सखा हैं, उन देवेश्‍वर शिव को नमस्‍कार है। प्रभो ! आप उत्‍त्‍म वस्‍त्र, उत्‍तम व्रत और उत्‍तम धनुष धारण करते हैं। आप धनुर्धर देवता को धनुष प्रिय हैं, आप धन्‍वी, धन्‍वन्‍तर, धनुष और धन्‍वाचार्य हैं, आपको नमस्‍कार है। भयंकर आयुध धारण करने वाले सुरश्रेष्‍ठ महादेवजी को नमस्‍कार । अनेक रूपधारी शिव को नमस्‍कार हैं, बहुत से धनुष धारण करने वाले रूद्रदेव को नमस्‍कार है, आप स्‍थाणु रूप हैं, आपको नमस्‍कार है, उन तपस्‍वी शिव को नित्‍य नमस्‍कार । त्रिपुरनाशक और भगनेत्र विनाशक भगवान शिव को बारंबार नमस्‍कार है। नस्‍पतियों के पति तथा नरपति रूप महादेव जी को नमस्‍कार है । मातृकाओं के अधिपति और गणों के पालक शिव को नमस्‍कार है। गोपति और यज्ञपति शंकर नित्‍य नमस्‍कार है । जलपति तथा देवपति को नित्‍य नमस्‍कार है। पूषा के दॉत तोडने वाले, त्रिनेत्रधारी वरदायक शिव को नमस्‍कार है। नीलकण्‍ठ, पिण्‍डलवर्ण और सुनहरे केशवाले भगवान शंकर को नमस्‍कार है । अर्जुन ! अब मैं परम बुध्दिमान महादेवजी के जो दिव्‍य कर्म हैं, उनका अपनी बुध्दि के अनुसार जैसा मैने सुन रखा है, वैसा ही तुम्‍हारे समक्ष वर्णन करता हॅू। यदि वे कुपित हो जायॅ तो देवता, असुर, गन्‍धर्व और राक्षस इस लोक में अथवा पाताल में छिप जाने पर भी चैन से नहीं रहने पाते हैं । पहले की बात हैं, वे यज्ञपरायण दक्ष पर कुपित हो गये थे। उस समय उन्‍होंने उनके विधिपूर्वक किये जाने वाले यज्ञ को नष्‍ट कर दिया था। उन दिनों वे निर्दय हो गये थे और धनुष दवारा बाण छोडकर बडे जोर जोर से गर्जना करने लगे ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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