महाभारत वन पर्व अध्याय 115 श्लोक 1-18

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पंचदशाधिकशततम (115) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: पंचदशाधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

अकृतव्रण के द्वारा युधिष्‍ठि‍र से परशुरामजी के उपाख्यान के प्रसंग में ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह और भृगुऋषि‍ की कृपा से जमग्रिकी उत्पति का वर्णन

वैशम्पायनजी कहते है- जनमेजय ! उस पर्वत पर एक रात निवास करके भाइयों सहित राजा युधिष्ठिर ने तपस्वी मुनियों का बहुत सत्कार किया । लोमशजी में युधिष्ठिर से उन सभी तपस्वी महात्माओं का परिचय कराया । उनमें भृगु, अंगिरा, वसिष्‍ठ तथा कश्यप गोत्र मे अनेक संत महात्मा थे । उन सबसे मिलकर राजर्षि‍ युधिष्ठि‍र ने हाथ जोड़कर उन्हे प्रणाम किया और परशुरामजी के सेवक वीरवर अकृतव्रण से पूछा- ‘भगवन परशुरामजी इन तपस्वी महात्माओं को कब दर्शन देंगे उसी निमित्त से मैं भी उन भगवन भार्गव का दर्शन करना चाहता हूं । अकृतव्रण ने कहा- राजन ! आत्मज्ञानी परशुरामजी को पहले ही यह ज्ञात हो गया था कि आप आ रहे हैं । आप पर उनका बहुत प्रेम है, अत: वे शीध्र ही आपको दर्शन देंगे । ये तपस्वी लोग प्रत्येक चतुर्दशी ओर अष्‍टमी को परशुरामजी का दर्शन करते हैं। आज की रात बीत जाने पर कल सबेरे चतुर्दशी हो जायेगी । युधिष्ठिर ने पूछा- मुने आप महाबली परशुरामजी के अनुगत भक्त हैं । उन्होंने पहले जो जो कार्य किये हैं, उन सबको आपने प्रयत्‍क्ष देखा है । अत: हम आपसे जानना चाहते है कि परशुरामजी ने किस प्रकार ओैर किस कारण से समस्त क्षत्रियों को युद्ध में पराजित किया था । आप वह वृत्तांत आज मुझे बताइये । अकृतव्रण ने कहा- भरतकुल भुषण नृपश्रेष्‍ट युधिष्ठि‍र ! भृगुवंशी परशुरामजी की कथा बहुत बड़ी और उत्तम है, मैं आपसे उसका वर्णन करुंगा । भारत ! जमदग्रिकुमार परशुराम तथा हैहयराज कार्तवीर्य का चरित्र देवताओं के तुल्य है । पाण्डुनन्दन ! परशुरामजी ने अर्जुन नाम से प्रसिद्ध जिस हैहयराज कार्तवीर्य का वध किया था, उसके एक हजार भुजाएं थीं । पृथ्वीपते ! श्रीदत्तोत्रेयजी की कृपा से उसे एक सोने का विमान मिला था और भूतल के सभी प्राणीयों पर उसका प्रभुत्व था । महामना कार्तवीर्य के रथ की गति को कोई भी रोक नहीं सकता था । उस रथ और वर के प्रभाव से शक्ति सम्पन्न हुआ कार्तवीर्य अर्जुन सब ओर घूमकर सदा देवताओं, यक्षों तथा ऋषि‍यों को रौंदता फिरता था और सम्पूर्ण प्राणीयों को भी सब प्रकार से पीड़ा देता था । कार्तवीर्य ऐसा अत्याचार देख देवता तथा महान व्रत का पालन करने वाले ऋषि‍ मिलकर दैत्यों का विनाश करने वाले सत्यपराक्रमी देवाधिदेव भगवान विष्‍णु के पास जा इस प्रकार बोले- ‘भगवन ! आप समस्त प्राणीयों की रक्षा के लिए कृतवीर्य कुमार अर्जुन का वध किजिये ।‘ एक दिन शक्ति शाली हैहयराज ने दिव्य विमान द्वारा शची के साथ क्रीड़ा करते हुए देवराज इन्द्र पर आक्रमण किया । भारत ! तब भगवान विष्‍णु ने कार्तवीर्य अर्जुन का नाश करने के सम्बंध में इन्द्र के साथ विचार विनिमय किया । समस्त प्राणीयों के हित के लिये जो कार्य करना आवश्यक था, उसे देवेन्द्र ने बताया । तत्पश्चात विश्ववन्दित भगवान विष्‍णु ने वह सब कार्य करने की प्रतिज्ञा करके अत्यन्त रमणीय बदरीतीर्थ की यात्रा की, जहां उनका अपना ही विस्तृत आश्रम था ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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