महाभारत सभा पर्व अध्याय 52 श्लोक 23-43

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द्विपन्चाशत्तम (52) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: द्विपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 23-43 का हिन्दी अनुवाद

इन्द्र के अनुगामी गन्धर्वराज चित्ररथ ने चार सौ दिव्य अश्व दिये, जो वायु के समान वेगशाली थे। तुम्बुरु नामक गन्धर्वराज ने प्रसन्नता पूर्वक सौ घोड़े भेंट किये, जो आम के पत्ते के समान हरे रंग वाले तथा सुवर्ण की मालाओं से विभूषित थे। महाराज! शूकर देश के पुण्यात्मा राजा ने कई सौ गजरत्न भेंट किये। मत्स्य देश के राजा विराट ने सुवर्ण मालाओं से विभूषित दो हजार मतवाले हाथी उपहार के रूप में दिये। राजन्! राजा वसुदान ने पांशुदेश से छब्बीस हाथी, वेग और शक्ति से सम्पन्न दो हजार सुवर्ण मालाभूषित जवान घोड़े और सब प्रकार की दूसरी भेंट सामग्री भी पाण्डवों को समर्पित की। राजन्! राजा दु्रपद ने चौदह हजार दासियाँ, दस हजार सपतीक दास, हाथी जुते हुए छब्बीस रथ तथा अपना सम्पूर्ण राज्य कुन्ती पुत्रों को यज्ञ के लिये समर्पित किया था। वृष्णि कुलभूषण वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन का आदर करते हुए चौदह हजार उत्तम हाथी दिये। श्रीकृष्ण अर्जुन के आत्मा हैं और अर्जुन श्रीकृष्ण के आत्मा हैं। अर्जुन श्रीकृष्ण से जो कह देंगे, वह सब के नि:संदेह पूर्ण करेंगे। श्रीकृष्ण अर्जुन के लिये परमधाम को भी त्याग सकते हैं। इसी प्रकार अर्जुन भी श्रीकृष्ण के लिये अपने प्राणों तक का त्याग कर सकते हैं। मलय तथा दर्दुरपर्वत से वहाँ के राजा लोग सोने के घोड़ों में रखे हुए सुगन्धित चन्दन रस तथा चन्दन एवं अगुरु के ढेर भेंट के लिये लेकर आये थे। चोल और पाण्ड्य देशों के नरेश चमकीले मणि रत्न, सुवर्ण तथा महीन वस्त्र लेकर उपस्थित हुए थे, परंतु उन्हें भी भीतर जाने के लिये रास्ता नहीं मिला। सिंहल देश के क्षत्रियों ने समुद्र का सारभूत वैदूर्य, मोतियों के ढेर तथा हाथियों के सैकड़ों झूल अर्पित किये। वे सिंहल देशीय वीर मणियुक्त वस्त्रों से अपने शरीरों को ढके हुए थे। उनके शरीर का रंग काला था और उन की आँखों के कोने लाल दिखायी देते थे। उन भेंट सामग्रियों को लेकर वे सब लोग दरवाजे पर रोके हुए खेड़े थे। ब्राह्मण, विजित क्षत्रिय, वैश्य तथा सेवा की इच्छा वाले शूद्र प्रसन्नता पूर्वक वहाँ उपहार अर्पित करते थे। सभी म्लेच्छ तथा आदि, मध्य और अन्त में उत्पन्न सभी वर्ण के लोग विशेष्ज्ञ प्रेम और आदर के साथ युधिष्ठिर के पास भेंट लेकर आये थे। अनेक देशों में उत्पन्न और विभिन्न जाति के लोगों के अगामन से युधिष्ठिर के यज्ञ मण्डप में मानो यह सम्पूर्ण लोक ही एकत्र हुआ जान पड़ता था। मेरे शत्रुओं के घर में राजाओं द्वारा लाये हुए बहुत से छोटे-बड़े उपहरों को देखकर दु:ख से मुझे मरने की इच्छा होती थी। राजन्! पाण्डवों के वहाँ जिन लोगों का भरण-पोषण होता है, उनकी संख्या मैं आपको बता रहा हूँ। राजा युधिष्ठिर उन सबके लिये कच्चे-पक्के भोजन की व्यवस्था करते हैं। युधिष्ठिर के यहाँ तीन पद्म दर हजार हाथी सवार और घुड़ सवार, एक अर्बुद (दर करोड़) रथारोही तथा असंख्य पैदल सैनिक हैं। युधिष्ठिर के यज्ञ में कहीं कच्चा अन्न तौला जा रहा था, कहीं पक रहा था, कहीं परोसा जाता था और कहीं ब्राह्मणों के पुण्याह वाचन की ध्वनि सुनायी पड़ती थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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