महाभारत सभा पर्व अध्याय 59 श्लोक 16-21
एकोनषष्टितम (59) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
धर्मराज युधिष्ठिर ! अस्त्रविद्या निपुण योद्धा अनाड़ी को एवं बलिष्ठ पुरूष दुर्बल को शठता से ही जीतना चाहता है । इस प्रकार सब कार्यो में विद्वान् पुरूष अविद्वानों को शठता से ही जीतते हैं; किंतु लोग उसे शठता नहीं कहते। इसी प्रकार आप यदि मेरे पास आकर यह मानते हैं कि आपके साथ शठता की जायगी एवं यदि आपको भय मालूम होता है तो इस जूए के खेल से निवृत्त हो जाइये । युधिष्ठिरने कहा—राजन् ! मैं बुलाने पर पीछे नहीं हटता, यह मेरा निश्चित व्रत है । दैव बलवान् है । मैं दैव के वश में हूँ। अच्छा तो यहाँ जिन लोगों का जमाव हुआ है, उनमें किसके साथ मुझे जुआ खेलना होगा ? मेरे मुकाबले में बैठकर दूसरा कौन पुरूष दाँव लगायेगा ? इसका निश्चय हो जाय, जो जूए का खेल प्रारम्भ हो। दुर्योधन बोला—महाराज ! दाँव पर लगाने के लिये धन और रत्न तो मैं दूँगा; परंतु मेरी ओर से खेलेंगे ये मेरे मामा शकुनि । युधिष्ठिरने कहा—दूसरे के लिये दूसरे का जूआ खेलना मुझे तो अनुचित ही प्रतीत होता है । विद्वन् ! इस बात को समझ लो, फिर इच्छानुसार जूए का खेल प्रारम्भ हो।
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