महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 47 श्लोक 44-67

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सप्तचत्वारिंश (47) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 44-67 का हिन्दी अनुवाद

उस बलवान वीरने इन्द्रधनुष के समान अपने विशाल शरासन को कानों तक खींचकर मद्रराज शल्य को मार डालने की इच्छा से उनपर धावा किया। वह विशाल रथ-सेना के द्वारा सब ओर से घिरकर बाणों की वर्षा करता हुआ शल्य के रथ पर चढ़ गया। मतवाले हाथी के समान पराक्रम प्रकट करनेवाले श्वेत को धावा करते देख आपके सात रथियोंने मौत के दांतों में फॅसे हुए मद्रराज शल्य को बचाने की इच्छा रखकर उन्हें चारोंओरसे घेर लिया। राजन्! उन रथियों के नाम से है-कोसलनरेश बृहद्वल, मगधदेशीय जयत्सेन, शल्य के प्रतापी पुत्र रूक्मरथ, अवन्ति के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण तथा बृहत्क्षत्र के पुत्र सिंधुराज जयद्रथ। इन महामना वीरों के फैलाये हुए अनेक रूपरंग के विचित्र धनुष बादलों में बिजलियों के समान दृष्टिगोचर हो रहे थे। उन सबने श्वेत मस्तक पर बाणों की वर्षा आरम्भ करदी, मानो ग्रीष्म ऋतु के अन्त में वायु द्वारा उठाये हुए मेघ पर्वतपर जल बरसा रहे हो। उस समय महान् धनुर्धर सेनापति श्वेतने कुपित होकर तेज किये हुए भल्ल नामक सात बाणों द्वारा उन सातों रथियों के धनुष काटकर उनके टुकडे़-टुकडे़ कर दिये। भारत ! वे सातों धनुष कट जाने पर ही दृष्टि में आये। तदनन्तर उन सबने आधे निमेष में ही दूसरे धनुष ले लिये और श्वेत के ऊपर एक ही साथ सात बाण चलाये। तब अमेय आत्मबल से युक्त महाबाहु श्वेतने पुनः शीघ्रगामी सात भल्ल मारकर उन धनुर्धरों के धनुष काट दिये। अपने विशाल धनुषों के कट जाने पर उन सातों महारथियों ने बड़ी उतावली के साथ रथ-शक्तियां उठा ली और भयंकर गर्जना की। भरतश्रेष्ठ ! वे सातों शक्तियां प्रज्वलित हो देवराज इन्द्र के वज्र की भॉति भयंकर शब्द करती हुई श्वेत के रथ की ओरएक साथ चली। परंतु श्वेत उत्तम अस्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होनें सात भल्ल मारकर अपने निकट आने से पहले ही उन शक्तियों के टुकडे़-टुकडे़ कर दिये। भरतश्रेष्ठ ! तत्पश्चात् श्वेतने सबकी काया को विदीर्ण कर देनेवाले एक बाण को लेकर उसे रूक्तरथ की और चलाया। वज्र से भी अधिक प्रभावशाली वह महान् बाण रूक्त-रथ के शरीर पर जा गिरा। राजन्! उस बाण से अत्यन्त घायल होकर रूक्मरथ अपने रथ के पिछले भाग पर बैठ गया और अत्यन्त मूर्च्छित हो गया। उसे अचेत और अनमना देख सारथी तनिक भी घबराहट में न पड़कर अत्यंत अतावली के साथ सबके देखते-देखते रणभूमि में दूर हटा ले गया। तब महाबाहु श्वेत ने दूसरे स्वर्णभूषित छः बाण लेकर उन छहों रथियों के ध्वज के अग्रभाग काट गिराये। परंतप ! फिर उसके घोड़ोंऔर सारथियों को विदीर्ण करके उनके शरीर में भी बहुत-से बाण जड़ दिये। इसके बाद श्वेतने शल्य के रथपर धावा किया। भारत ! तब सेनापति श्वेत को शीघ्रतापूर्वक शल्य के रथकी ओरजाते देख आपकी सेनाओं में हाहाकार मच गया। तब आपके महाबली पुत्र दुर्योधन भीष्मजी को आगे करके सम्पूर्ण सेना के साथ श्वेत के रथपर चढाई की और मृत्यु के मुख में पहुंचे हुए मद्रराज शल्य को छुडा लिया। तदनन्तर आपके और पाण्डवों के सैनिक में अत्यन्त भयंकर रोमांचकारी युद्ध होने लगा। रथ से रथ और हाथी से हाथी गुंथ गये। पाण्डवपक्ष की और से सुभद्राकुमार अभिमन्यु, भीमसेन, महारथी सात्यकि, केकयराजकुमार, राजा विराट तथा द्रुपद-पुत्र धृष्टघुम्न- ये पुरूषसिंह और चेदि एवं मत्स्यदेश के क्षत्रिय युद्ध कर रहे थे कुरूकुल के वृद्ध पुरूष पितामह भीष्म ने इस सबपर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व श्वेतयुद्धविषयक सैतालिसवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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