महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 21-42

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:२६, २६ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "Category:महाभारत भीष्मपर्व" to "Category:महाभारत भीष्म पर्व")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

चतु:पञ्चाशत्तम (54) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: चतु:पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद

शत्रुदमन भीष्मसेन को वहां रथहीन हुआ देख शक्रदेव तीखे बाणों की वर्षा करता हुआ उनकी और दौडा। राजन् ! जैसे गर्मी के अन्त में बादल पानी की बूंदें

बरसाता है, उसी प्रकार महाबली शक्रदेव भीमसेन के ऊपर बाणों की वृष्टि करने लगा। जिसके घोडे़ मारे गये थे, उसी रथपर खडे हुए महाबली भीमसेन ने शुक्रदेव को लक्ष्य करके सम्पूर्णतः लोह के सारतत्व की बनी हुई अपनी गदा चलायी। राजन् ! उस गदा की चोट खाकर कलिंगराजकुमार प्राणशुन्य हो अपने सारथि और ध्वज के साथ ही रथ से नीचे पृथ्वी पर गिर पडा। अपने पुत्र को मारा गया देख कलिंग राज ने कई हजार रथों के द्वारा भीमसेन की सम्पूर्ण दिशाओं को रोक दिया। नरश्रेष्ठ ! तब भीमसेन ने अत्यन्त वेगशाली एवं भारी ओर विशाल गदा को वही छोड़कर अत्यन्त भयंकर कर्म करने की इच्छा से तलवार खींच ली तथा ऋषभ के चमडे़ की बनी हुई अनुपम ढाल हाथ में ले ली। राजन् ! उस ढाल में सुवर्णमय नक्षत्र और अर्धचन्द्र के आकाश की फुलियां जडी हुई थी। इधर क्रोध में भरे हुए कलिंगराज ने धनुष की प्रत्यंचा को रगड़कर सर्प के समान विषैला एक भयंकर बाण हाथ में लिया और भीमसेन के वध की इच्छा से उनपर चलाया। राजन् ! भीमसेन अपने विशाल खडग से उसके वेगपूर्वक चलाये हुए तीखे बाण के दो टुकडे़ कर दिये और कलिंगों की सेना को भयभीत करके हुए हर्ष में भरकर बडे़ जोर से सिंहनाद किया। तब कलिंगराज ने रणक्षेत्र में अत्यन्त कुपित हो भीमसेन पर तुरन्त ही चौदह तोमरों का प्रहार किया।, जिन्हें सान पर चढाकर तेज किया गया था। राजन् ! वे तोमर अभी भीमसेन तक पहुंच ही नही पाये थे कि उन महाबाहु पाण्डुकुमारने बिना किसी घबराहट के अपनी अच्छी तलवार से सहसा उन्हे आकाश में ही काट डाला। इस प्रकार पुरूषश्रेष्ठ भीमसेन ने रणक्षेत्र में उन चौदह तोमरों को काटकर भानुमान पर धावा किया। यह देख भानुमान ने अपने बाणों की वर्षा से भीमसेन को आच्छादित करके आकाश को प्रतिध्वनित करते हुए बडे़ जोर से गर्जना की। भीमसेन उस महासमर में भानुमान की वह गर्जना न सह सके। उन्होंने और भी अधिक जोर से सिंह के दहाडना आरम्भ किया। उनकी उस गर्जना से कलिंगों की वह विशाल वाहिनी संत्रस्त हो उठी। भरतश्रेष्ठ ! उस सेना सैनिकों ने भीमसेन को युद्ध में मनुष्य नही, कोई देवता समझा। आर्य ! तदनन्तर महाबाहु भीमसेन जोर जोर से गर्जना करके हाथ में तलवार लिये वेगपूर्वक उछलकर गजराज के दांतो के सहारे उसके मस्तक पर चढ गये। इतने ही में कलिंगराजकुमार ने उनके ऊपर शक्ति चलायी; किंतु भीष्मसेन ने उनके दो टुकडे कर दिये और अपने विशालखग से भानुमान के शरीर को बीच से काट डाला। इस प्रकार गजारूढ़ होकर युद्ध करनेवाले कलिंग राजकुमार को मारकर शत्रुदमन भीमसेन ने भार सहने में समर्थ अपनी भारी तलवार को उस हाथी के कंधे पर भी मारा। कंधा कट जाने से वह गजयुथपति चिग्घाडता हुआ समुद्र वेग से भग्न होकर गिरनेवाले शिखरयुक्त पर्वत के समान धराशायी हो गया। भारत! फिर कवचधारी, खगपाणि, उदारचित्त, भरतवंशी भीमसेन, उस हाथी से सहसा कूद कर धरती पर खडे़ हो गये।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।