महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 77 श्लोक 19-38

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सप्तसप्ततितम (77) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तसप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-38 का हिन्दी अनुवाद

महाराज! भीमसेन के सारथि विशोक को समरभूमि में अकेला खड़ा देख धृष्टद्युम्न मन ही मन बहुत दुखी और अचेत हो गये। वे लंबी साँस खींचते और आँसू बहाते हुए गद्रदकण्ठ से पूछने लगे-विशोक! मेरे प्राणों से भी अधिक प्यारे भीमसेन कहाँ हैं। इतना कहते-कहते वे बहुत दुखी हो गये। तब विशोक ने हाथ जोड़कर धृष्टद्युम्न से कहा- प्रभो! पराक्रमी और बलवान् पाण्डुनन्दन मुझे यहीं खड़ा करके कौरवों के इस सैन्यसागर में घुस गये हैं। ‘जाते समय पुरूषसिंह भीमसेन ने मुझसे प्रेमपूर्वक यह बात कही कि सूत! तुम दो घड़ी तक इन घोड़ों को रोककर यहीं मेरी प्रतीक्षा करो। जब तक कि ये जो लोग मेरा वध करने के लिये उद्यत हैं,इन्हें अभी मार न डालूँ।‘तदनन्तर गदा हाथ में लिये महाबली भीमसेन को धावा करते देख समस्त सैनिकों के रोंगटे खड़े हो गये। ‘राजन! उस भयंकर एवं तुमुल युद्ध में भीमसेन ने इस महाव्यूह का भेदन करके इसके भीतर प्रवेश किया था। विशोक की यह बात सुनकर महाबली द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने उस समरागंण में उनके सारथि से इस प्रकार कहा-‘सारथे! युद्धस्थल में भीमसेन को छोड़कर और पाण्डवों से स्नेह तोड़कर अब मेरे जीवन से कोई प्रयोजन नहीं है।‘भीम एकमात्र युद्ध के पथ पर गये हैं और मैं भी युद्धस्थल में उपस्थित हूँ। ऐसी दशा में यदि भीमसेन के बिना ही लौट जाऊँ तो क्षत्रियसमाज मुझे क्या कहेगा। ‘जो अपने सहायकों को छोड़कर स्वयं कुशलपूर्वक घर को लौट आता है,उसका इन्द्र आदि देवता अनिष्ट करते हैं। ‘महाबली भीम मेरे सखा और सम्बन्धी हैं। वे हम लोगों के भक्त हैं और मैं भी उन शत्रुसूदन भीम का भक्त हूँ।‘अतः मैं भी वहीं जाऊँगा जहाँ भीमसेन गये हैं। देखो जैसे इन्द्र दानवों का संहार करते हैं,उसी प्रकार मैं भी शत्रुसेना का विनाश कर रहाहूँ। भारत! ऐसा कहकर वीरवर धृष्टद्युम्न भीमसेन के बनाये हुए मार्गो से कौरव सेना के भीतर गये। उन मार्गो पर गदा के मारे हुए हाथी पड़े थे। उससमय कुछ दूर जाकर धृष्टद्युम्न ने शत्रुसेना को दग्ध करते हुए भीमसेन को देखा। जैसे आँधी वृक्षों को बलपूर्वक तोड़देती या उखाड़ डालती है,उसी प्रकार भीमसेन भी रणभूमि में शत्रुओं का संहार कर रहे थे। समरागंण में भीमसेन के मारे हुए रथी,घुड़सवार,पैदल और सवारों सहित हाथी बड़े जोर से आर्तनाद कर रहे थे। आर्य! विचित्र रीति से युद्ध करने वाले विद्वान् भीमसेन के द्वारा मारी जाती हुई आपकी सेना में हाहाकार मच गया। शत्रुओं का संताप देने वाले नरेश! तदनन्तर अस्त्रों के ज्ञाता समस्त कौरव-सैनिक भीमसेन को सब ओर से घेरकर अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करते हुए बिना किसी भय के उन पर चढ़ आये। विश्व के विख्यात वीर बलवान् द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न ने देखा- शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ पाण्डुनन्दन भीमसेन पर सब ओर से धावा हो रहा है। अत्यन्त संगठित हुई भयंकर सेना ने उन पर आक्रमण किया है। यह देखकर धृष्टद्युम्न भीमसेन को आश्वासन देते हुए उनके पास गये। उनका प्रत्येक अंग बाणों से क्षत-विक्षत हो रहा था। वे पैदल ही क्रोधरूपी विष उगल रहे थे और गदा हाथ में लिये प्रलयकाल के यमराज के समान जान पड़ते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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