महाभारत वन पर्व अध्याय 120 श्लोक 12-24

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विं‍शत्‍यधि‍कशततम (120) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: विं‍शत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद

मैं अर्जुन कुमार अभि‍मन्‍यु के पराक्रम को जानता हूं । वह समरभूमि‍ में खड़ा होने के पश्‍चात श्रीकृष्‍ण नन्‍दन प्रद्युम्‍न के ही समान जान पड़ता हैा वीरवर साम्‍ब बलपूर्वक शत्रुसेना को मथकर अपनी दोनों भुजाओं से रथ और सारथी सहि‍त दु:शासन का दमन करें । जाम्‍बवती नन्‍दन साम्‍ब रणभूमि‍ में बड़े प्रचण्‍ड पराक्रम शाली बन जाते हैा उस समय इनके लि‍ये कुछ भी असहृय नहीं हैा इन्‍होनें बाल्‍यावस्‍था में ही सहसा शम्‍बरासुर की सेना को नष्‍ट भ्रष्‍ट कर दि‍या था । इनकी जांघे गोल है, भुजायें लंबी और मोटी हैं; इन्‍होने युद्ध में अश्‍वाराहि‍यों की कि‍तनी ही सेनाओं का संहार कि‍या हैं । भला संग्रामभूमि‍ में महारथी साम्‍ब के रथ के सम्‍मुख कौन आ सकता है । जैसे अन्‍नकाल आने पर यमराज अपनी भुजाओं में पड़ा हुआ मनुष्‍य कदापि‍ वहां से नि‍कल नही सकता, उसी प्रकार रणक्षेत्र में वीरवर साम्‍ब के वश में आया हुआ कौन ऐसा योद्धा होगा, जो पुन: जीवि‍त लौट सके । वसुदेव नन्‍दन भगवान श्रीकृष्‍ण चाहे तो अपने बाणरूपी अग्‍नि‍ की लपटों और भीष्‍म इन दोनों प्रसि‍द्ध महारथि‍यों को, पुत्रोसहि‍त सोमदत्‍त को तथा सारी कौरव सेना को भी भस्‍म कर डालेंगे । देवताओं सहि‍त सम्‍पूर्ण लोंको में कौन सी ऐसी वस्‍तु है, जो हाथों में हथि‍यार, उत्‍तम बाण तथा चक्र धारण करके युद्ध में अनुपम पराक्रम प्रकट करने वाले भगवान श्रीकृष्‍ण के लि‍ये असहृय हो । ढाल तलवार लि‍ये हुए वीरवर अनि‍रूद्ध भी, जैसे यज्ञों में कुशाओं द्वारा यज्ञ की वेदी ढक दी जाती है, उसी प्रकार युद्ध में सि‍र काटकर मरे और अचेत पड़े हुए धृतराष्‍ट्र पुत्रों द्वारा इस भूमि‍ को ढक दें । गद, उन्‍मुक्‍त बाहुक, भानु, नीथ, युद्ध में शूरवीर कुमार नि‍शल तथा रणभूमि‍ मे प्रचण्‍ड पराक्रमी सारण और चारूदेष्‍ण- से सब लोग अपने कुल के अनुरूप पराक्रम प्रकट करें । यदुवंशि‍यों की शौर्यपूर्ण सेना, जि‍समें वृष्‍णि‍, भोज और अन्‍धकवंशी योद्धाओं की प्रधानता है, आक्रमण करके युद्ध में धृतराष्‍ट्र पुत्रों को मार डाले और संसार में अपने उज्‍जवल यश का वि‍स्‍तार करें । धर्मात्‍माओं में श्रेष्‍ट महात्‍मा युधि‍ष्‍ठि‍र जब तक अपने उस व्रत को, जि‍से इन कुरू कुल भूषण ने जूए के समय प्रति‍ज्ञा पूर्वक स्‍वीकार कि‍या था, पूर्ण न कर लें, जब तक अभि‍मन्‍यु इस पृथ्‍वी पर शासन करें । तदनन्‍तर अपना व्रत समाप्‍त करके हमारे द्वारा छोड़े हुए बाणों से ही शत्रुओं पर वि‍जय पाकर धर्मराज युधि‍ष्‍ठि‍र इस पृथ्‍वी का राज्‍य भागेंगे । उस समय तक यह पृथ्‍वी धृतराष्‍ट्र के पुत्रों से रहि‍त हो जायेगी और सूतपुत्र कर्ण भी मर जायगा । यदि‍ ऐसा हुआ तो यह हमारे लि‍ये महान ययाशोवर्धक कार्य होगा । भगवान श्रीकृष्‍ण बोले- उदारहृदय मधुकुल भूषण सात्‍यके ! तुम्‍हारी यह बात सत्‍य है, इसमें तनि‍क भी संशय नही है । हम तुम्‍हारे इन वचनों को स्‍वीकार करते हैं; परंतु ये कुरूश्रेष्‍ठ युधि‍ष्‍ठि‍र कि‍सी भी ऐसी भूमि‍ को कि‍सी तरह लेना नहीं चाहेगे, जि‍से इन्‍होंने अपनी भुजाओं द्वारा न जीता हो । कामना, भय अथवा लोभ कि‍सी भी कारण से युधि‍ष्‍ठि‍र अपनाधर्म कदापि‍ नहीं छोड़ सकते । उसी तरह अति‍रथी वीर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा यह द्रुपद कुमारी कृष्‍णा भी अपना धर्म नहीं छोड़ सकती ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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