महाभारत वन पर्व अध्याय 120 श्लोक 25-32

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विं‍शत्‍यधि‍कशततम (120) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: विं‍शत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 25-32 का हिन्दी अनुवाद

भीमसेन और अर्जुन ये दोनों वीर युद्ध में इस पृथ्‍वी पर अपना सानी नहीं रखते । उनसे और दोनों माद्रीकुमारों से संयुक्‍त होने पर ये युधि‍ष्‍ठि‍र सारी पृथ्‍वी का शासन कैसे नहीं कर सकते । जब महात्‍मा पांचालराज, केकय, चेदि‍राज और हम सब लोग एक साथ होकर रण में पराक्रम दि‍खायेंगे, उसी समय हमारे सारे शत्रुओं का अस्‍ति‍त्‍व मि‍ट जायेगा । युधि‍ष्‍ठि‍र ने कहा- सात्‍यके ! तुम जो कुछ कह रहे हो, वह तुम्‍हारे जैसे वीर के लि‍ए कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है; परंतु मेरे लि‍ये सत्‍य की रक्षा ही प्रधान है, राज्‍य की प्राप्‍ति‍ नहीं । केवल श्रीकृष्‍ण ही मुझे अच्‍छी तरह जानते हैं और मैं भी कृष्‍ण के स्‍वरूप को यर्थात रूप से जानता हूं । शि‍नि‍वंश के प्रधान वीर माधव ! ये पुरूषरत्‍न श्रीकृष्‍ण जभी पराक्रम दि‍खोन का अवसर आया समझेंगे, तभी तुम और भगवान केशन मि‍लकर युद्ध में दुर्योधन को जीत सकोगे । अब ये यदुवंशी वीर द्वाराका को लौट जायं । आप लोग मेरे नाथ या सहायक तो हैं ही; सम्‍पूर्ण मनुष्‍य लोक के भी रक्षक हैं, आप लोगों से मि‍लना हो गया, यह बड़े आनन्‍द की बात है। अनलुपम शक्‍ति‍शाली वीरों ! आपलोग धर्मपालन की ओर सदा सावधानी रखें । मैं आप सभी सुखी मि‍त्रों को एकत्र हुआ देखूंगा । तत्‍पश्‍चात वे यादव पाण्‍डव वीर एक दूसरे की अनुमति‍ ले, वृद्धो को प्रणाम करके, बालकों को हृदय से लगाकर तथा अन्‍य सबसे मि‍लकर अपने अभीष्‍ट स्‍थान को चल दि‍ये । यादववीर अपने घर गये और पाण्‍डव लोग पूर्ववत तीर्थो मे वि‍चरण करने लगे । श्रीकृष्‍ण को वि‍दा करके धर्मराज युधि‍ष्‍ठि‍र लोमशजी, भाइयों और सेवकों के साथ वि‍दर्भनरेश पूजि‍त, उत्‍तम तीर्थोवाली नदी पयोष्‍णी तटपर गये । उसके जल में यज्ञ सम्‍बंधी सोमरस मि‍ला हुआ था पयोष्‍णी के तटपर जा उन्‍होने उसका पीकर वहां नि‍वास कि‍या । उस समय प्रसन्‍नता से भरे हुए श्रेष्‍ठ द्वि‍ज उत्‍तम स्‍तुति‍यों द्वारा उन महात्‍मा नरेश की स्‍तुति‍ कर रहे थे ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशतीर्थ यात्रा के प्रसंग में यादव गमन वि‍षयक एक सौ बीसवां अध्‍याय पुरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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