महाभारत वन पर्व अध्याय 122 श्लोक 1-17

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द्वाविंशत्‍यधि‍कशततम (122) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: द्वाविंशत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

महर्षि‍ च्यवन को सुकन्या की प्राप्ति

लोमशजी कहते हैं- युधिष्‍ठि‍र ! महर्षि‍ भृगु के पुत्र च्यवन मुनि हुए, जो महान तपस्वी थे । उन्होंने उस सरोवर के समीप तपस्या आरम्भ की । पाण्डुनन्दन ! परम तेजस्वी महात्मा च्यवन वीरासन से बैठकर ठूंठे काठ के समान जान पड़ते थे । राजन ! वे एक ही स्थान पर दीर्घकाल तक अविचल भाव से बैठे रहे । धीरे धीरे अधिक समय बीतने पर उनका शरीर चींटियों से व्याप्त हो गया । वे महर्षि‍ लताओं से आच्छादित हो गये और बांबी के सामन प्रतीत होने लगे । इस प्रकार लता वेलों से आच्छादित हो बुद्धिमान च्यवन मुनि सब ओर से केवल मिट्टी के लोदें के समान जान पडने लगे। दीमकों द्वारा तमा की हुई मिट्टी के ढेर से ढके हुए वे बड़ी भारी तपस्या कर रहे थे । इस प्रकार दीर्घ काल व्यतीत होने पर राजा शर्याति इस उत्तम एवं रमणीय सरोवर के तट पर विहार के लिये आये । युधिष्‍ठि‍र ! उनके अन्त: पुर में चार हजार स्त्रिंया थी; परंतु संतान के नाम पर केवल एक ही सुन्दरी पुत्री थी, जिसका नाम सुकन्या था । यह कन्या दिव्य वस्‍त्राभुषाणों से विभुषि‍त हो सखियों से घि‍री हुई बन मे इधर से उधर धूमने लगी । घूमती घामती वह भृगुनन्दन च्यवन की बांबी के पा जा पहूंची । वहां की भूमि उसे बड़ी मनोहर दिखायी दी । वह सखियों के साथ वृक्षों के फल फूल तोड़ती हुई चारों ओर घूमने लगी । सुन्दर रुप, नयी अवस्था, काम भाव के उदय ओर यौवन के मद से प्रेरित हो सुकन्या ने उत्तम फूलों से भरी हुई वन वृक्षों की बहुत सी शाखाएं तोड़ लीं । उस समय उसके शरीर पर एक ही वस्त्र था ओर वह भांति भांति के अलंकारो से अलंकृत थी । बुद्धिमान च्यवन मुनि ने उसे देखा । वह चमकती हुई विद्युत के समान चारों ओर विचर रही थी । उसे एकान्त मे देखकर परम कान्तिमान, तपोबल सम्पन्न एवं दुर्बल कण्ड वाले ब्रह्मर्षि‍ च्यवन को बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने उस कल्याणमयी राजकन्या को पुकारा; परंतु वह ( ब्रह्मर्षि‍ का कण्ड दुर्बल होने के कारण) उनकी आवाज नहीं सुनती थी । उस बांबी में मुनिवर च्यवन की चमकती हुई आंखो को देखकर उसे बहुत कौतूहल हुआ । उसकी बुद्धि पर मोह छा गया और उसने विवश होकर यह कहती हुई कि ‘देखूं’ यह क्या है एक कांटे से उन्हे छेद दिया । उसके द्वारा आंखे बि‍धं जाने के कारण परम क्रोधी ब्रह्मर्षि‍ च्यवन अत्यन्त कुपित हो उठे । फिर तो उन्होंने शर्याती की सेना के मल मूत्र बंद कर दिये । मल मूत्र का द्वार बंद हो जाने से मलावरोध के कारण सारी सेना को बहुत दु:ख होने लगा । सैनिकों की ऐसी अवस्था देखकर राजा ने सबसे पूछा- ‘यहां नित्य निरन्तर तपस्या में संलग्न रहने वाले वयोवृद्ध महामना च्यवन रहते हैं । वे स्वभावत: बडे क्रोधी हैं । उनका जानकर या बिना जाने आज किसने अपकार किया हैा जिन लोगों ने भी ब्रह्मर्षि‍ का अपराध किया है, वे तुरंत सब कुछ बता दें, विलम्ब न करें । तब सम्पूर्ण सैनिकों ने उनसे कहा- ‘महाराज ! हम नहीं जानते कि किसके द्वारा उनका अपराध हुआ है ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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