महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 269 श्लोक 66-68
एकोनसप्तत्यधिकद्विशततम (269) अध्याय: शान्ति पर्व (मोक्षधर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: एकोनसप्तत्यधिकद्विशततम अध्याय श्लोक 66-68 अध्याय: का हिन्दी अनुवाद
यदि यह सब दुष्कर कर्म करके भी किसी को मोक्ष नहीं प्राप्त हुआ तो कर्ताको धिक्कार है। उसके उस कार्य को धिक्कार है। और इसमें जो परिश्रम हुआ, वह व्यर्थ हो गया । यदि कर्मकाण्ड को व्यर्थ समझकर छोड़ दिया जाय तो यह नास्तिकता और वेदों की अवहेलना होगी; अत: भगवन् ! मैं यह सुनना चाहता हूँ कि कर्मकाण्ड किस प्रकार सुगमतापूर्वक मोक्ष का साधक होगा ? ब्रह्मन् ! आप मुझे तत्त्व की बात बताइये। मैं शिष्य भाव से आपकी शरण में आया हूँ। गुरूदेव ! मुझे उपदेश कीजिये। आपको मोक्ष के स्वरूप का जैसा ज्ञान है, वैसा ही मैं भी सीखना और जानना चाहता हूँ ।
इस प्रकार श्री महाभारत शान्तिपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में गोकपिलीयोपाख्यान विषयक दो सौ उनहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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