महाभारत वन पर्व अध्याय 128 श्लोक 17-21

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अष्‍टाविं‍शत्‍यधि‍कशततम (128) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: अष्‍टाविं‍शत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 17-21 का हिन्दी अनुवाद

धर्मराज बोले- राजन ! यदि‍ तुम्‍हारी ऐसी इच्‍छा हैं तो इनके साथ रहकर उतने ही समयतक तुम भी पापकर्मो का फल भोगो, इसके बाद तुम्‍हें उत्‍तम गति‍ प्राप्‍त होगी । लोमश्‍जी कहते हैं- युधि‍ष्‍ठि‍र ! तब कमलनयन राजा सोमक ने धर्मराज के कथानुसार सब कार्य कि‍या और भोगद्वारा पाप नष्‍ट हो जाने पर वे पुरोहि‍त के साथ ही नरक से छुट गये । तत्‍पश्‍चात उन गुरूप्रेमी‍ नरेश ने अपने गुरू के साथ ही पुण्‍यकर्मो द्वारा स्‍वयं प्राप्‍त कि‍ये हुए पुण्‍य लोक के शुभ भोगो का उपभोग कि‍या । यह उन्‍हीं राजा सोमक का पवि‍त्र आश्रम है, जो सामने ही सुशोभि‍त हो रहा है । यहां क्षमाशील होकर छ: रात नि‍वास करने से मनुष्‍य उत्‍तम गति‍ प्राप्‍त कर लेता हैं । कुरूश्रेष्‍ट ! हम सब लोग इस आश्रम में छ: रात तक मन और इन्‍द्रि‍यों पर संयम रखते हुए नि‍श्‍चिन्‍त होकर नि‍वास करेंगे । तुम इसके लि‍ये तैयार हो जाओ ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमशतीर्थ यात्रा के प्रसंग में जन्‍तुपाख्‍यान वि‍षयक एक सौ अठ्ठाईसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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