महाभारत सभा पर्व अध्याय 51 भाग 3

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एकपंचाशत्तम (51) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: भाग 3 का हिन्दी अनुवाद

उस समय प्राग्ज्योतिष नरेश भगदत्त हीरे और पद्मराग आदि मणियों के आभूषण तथा विशुद्ध हाथी दाँत की मूँछ वाले खड्ग देकर भीतर गये थे। द्वयक्ष, व्यक्ष, ललाटाक्ष, औष्णीक, अन्तवास, रोमक, पुरुषादक तथा एकपाद- इन देशों के राजा नाना दिशाओं से आकर राजद्वार पर रोक दिये जाने के कारण खड़े थे, यह मैंने अपनी आँखों देखा था। ये राजालोग भेंट सामग्री लेकर आये थे और अपने साथ अनेक रंग वाले बहुत से दूरगामी गधे (खच्चर) लाये थे, जिनकी गर्दन काली और शरीर विशाल थे। उनकी संख्या दस हजार थी। वे सभी रासभ सिखलाये हुए तथा सम्पूर्ण दिशाओं में विख्यात थे। उनकी लंबाई, चौड़ाई और ऊँचाई जैसी होनी चाहिये, वैसी ही थीञ उनका रंग भी अच्छा था। वे समस्त रासभ वड्क्षु नदी के तट पर उत्पन्न हुए थे। उक्त राजा लोग युधिष्ठिर को भेंट के लिये बहुत सा सोना और चाँदी देते थे और देकर युधिष्ठिर के यज्ञ मण्डप में प्रविष्ट होते थे। एक पाददेशीय राजाओं ने इन्द्रगोप (बीरबहूटी) के समान लाल, तोते के समान हरे, मन के समान वेगशाली इन्द्रधनुष के तुल्य बहुरंगे, संध्या काल के बादलों के सदृश लाल ओर अनेक वर्ण वाले महावेगशाली जंगली घोड़े एवं बहुमूल्य सुवर्ण उन्हें भेंट में दिये। चीन, शंक, ओड, वनवासी बर्बर, वार्ष्णेय, हार, हूण, कृष्ण, हिमालय प्रदेश, नीप और अनूप देशों के नाना रूपधारी राजा वहाँ भेंट देने के लिये आये थे, किंतु रोक दिये जाने के कारण दरवाजे पर ही खड़े थे। उन्होंने अनेक रूपवाले दस हजार गधे भेंट के लिये वहाँ प्रस्तुत किये थे, जिनकी गर्दन काली और शरीर विशाल, जो सौ कोस तक लगातार चल सकते थे। वे सभी सिखलाये हुए तथा सब दिशााअें में विख्यात थे। जिनकी लंबाई चौड़ाई पूरी थी, जिनका रंग सुन्दर और स्पर्श सुखद था, ऐसे बाह्वीक चीन के बने हुए, ऊनी, हिरन के रोम समूह से बने हुए, रेशमी, पाटके, विचित्र गुच्छेदार तथा कमल के तुल्य कोमल सहस्त्रों चिकने वस्त्र, जिनमें कपास का नाम भी नहीं था तथा मुलायम मृगचर्म- ये सभी वस्तुएँ भेंट के लिये प्रस्तुत थीं। तीखी और लंबी तलवारें, ऋष्टि, शक्ति, फरसे, अपरान्त (पश्चिम) देश के बने हुए तीखे परशु, भाँति-भाँति के रस और गन्ध, सहस्त्रों रत्न तथा सम्पूर्ण भेंट सामग्री लेकर शंक, तुषार, कंक, रोमश तथा शृंगी देश के लोग राजद्वार पर रोके जाकर खड़े थे। दूर तक जाने वाले बड़े-बड़े हाथी, जिनकी संख्या एक अर्बुद थी एवं घोड़े, जिनक संख्या कई सौ अर्बुद थी और सुवण जो एक पद्म की लागत का था। इन सबको तथा भाँति भाँति की दूसरी उपहरा सामग्री को साथ लेकर कितने ही नेरश राजद्वार पर रोके जाकर भेंट देने के लिये खड़े थे। बहुमूल्य आसन, वाहन, रत्न तथा सुवर्ण से जटित हाथी दाँत की बनी हुई शय्याएं, विचित्र कवच, भाँति भाँति के शस्त्र, सुवर्ण भूषित, व्याघ्र चर्म से आच्छादित और सुशिक्षित घोड़ों से जुते हुए अनेक प्रकार के रथ, हाथियों पर बिछाने योग्य विचित्र कम्बल, विभिन्न प्रकार के रत्न, नाराच, अर्धनाराच तथा अनेक तरह के शस्त्र- इन सब बहुमूल्य वस्तुओं को देकर पर्वूदेश के नरपति गण महात्मा पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर के यज्ञ मण्डप में प्रविष्ट हुए थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में दुर्योधन संताप विषयक इक्यावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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