महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 21 श्लोक 25-45

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एकविंश (21) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोण पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 25-45 का हिन्दी अनुवाद

उन समस्‍त सैनिकों को बार-बार बाणों की आग से दग्‍ध करते देख विराट के छोटे भाई शतानीक द्रोणाचार्य पर चढ़ आये। उन्‍होंने कारीगर के द्वारा स्‍वच्‍छ किये हुए सूर्यकी किरणों के समान चमकीले छ: बाणों द्वारा सारथि और घोड़ों सहित द्रोणाचार्य को घायल करके बड़े जोर से गर्जना की। तत्‍पश्‍चात् दुष्‍कर पराक्रम करने की इच्‍छा से क्रूरतापूर्ण कर्म करनेके लिये तत्‍पर हो उन्‍होंने महारथी द्रोणाचार्य पर सौ बाणों की वर्षा की। तब द्रोणाचार्य ने वहां गर्जना करते हुए शतानीक के कुण्‍डलसहित मस्‍तक को क्षुर नामक बाण द्वारा तुरंत ही धड़से काट गिराया । यह देख मत्‍स्‍यदेश के सैनिक भाग खड़े हुए। इस प्रकार भरदाजनन्‍दन द्रोणाचार्य ने मत्‍स्‍यदेशीय योद्धाओं को जीतकर चेदि, करूष, केकय, पाचाल, सृंजय तथा पाण्‍डव सैनिकों को भी बारंबार परास्‍त किया। जैसे प्रज्‍वलित अग्नि सारे वन को जला देती हैं, उसी प्रकार क्रोध में भयंकर शत्रुकी सेनाओं को दग्‍ध करते हुए सुवर्णमय रथवाले वीर द्रोणाचार्यको देखकर सृंजयवंशी क्षत्रिय कॉपने लगे। उत्‍तम धनुष लेकर शीघ्रतापूर्वक अस्‍त्र चलाने और शत्रुओं का वध करनेवाले द्रोणाचार्य की प्रत्‍यवा का शब्‍द सम्‍पूर्ण दिशाओं में सुनायी पड़ताथा। शीघ्रतापूर्वक हाथ चलानेवाले द्रोणाचार्य के छोड़े हुए भयंकर सायक हाथियों, घोड़ों, पैदलों, रथियों और गजारोहियों को मथे डालते थे। जैसे हेमन्‍त ऋतु के अन्‍त में अत्‍यन्‍त गर्जना करता हुआ वायुयुक्‍त मेघ पत्‍थरों की वर्षा करता हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य शत्रुओं को भयभीत करते हुए उनके ऊपर बाणों की वर्षा करते थे। बलवान, शूरवीर, महाधनुर्धर और मित्रों को अभय प्रदान करनेवाले द्रोणाचार्य सारी सेनामें हलचल मचाते हुए सम्‍पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे।

जैसे बादलों में बिजली चमकती है, उसी प्रकार अमित तेजस्‍वी द्रोणाचार्य के सुवर्ण भूषित धनुष को हम सम्‍पूर्ण दिशाओं में चमकता हुआ देखते थे। भरतनन्‍दन ! युद्ध में तीव्र वेग से विचरते हुए आचार्य के ध्‍वज में जो वेदी का चिन्‍ह बना हुआ था, वह हमें हिमालय के शिखरकी भॉति शोभायमान दिखायी देता था। जैसे देव-दानववन्दित भगवान विष्‍णु दैत्‍यों की सेना में भयानक संहार मचाते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य ने पाण्‍डव सेनामें भारी मारकाट मचा रक्‍खी थी। उन शौर्य सम्‍पन्‍न, सत्‍यवादी, विदवान्, बलवान और सत्‍यपराक्रमी महानुभाव द्रोण नेउसयुद्धस्‍थल के समान जान पड़ती थी । वह नदी भीरू पुरूषों को भयभीत करनेवाली थी । उसमें कवच लहरें और ध्‍वजाऍ भॅवरें थी । वह मनुष्‍यरूपी तटो को गिरा रही थी । हाथी और घोड़े उसके भीतर बडे़-बडे़ ग्राहो के समान थे । तलवारे मछलियॉ थीं । उसे पार करना अत्‍यन्‍त कठिन था । वीरों की हडिडयॉ बालू और कंकड़ सी जान पड़ती थी । वह देखने मे बडी भयानक थी । ढोल और नगाड़े उसके भीतर कछुए से प्रतीत होते थे । ढाल और कवच उसमें डोंगियों के समान तैर रहे थे । वह घोर नदी केशरूपी सेवार और घास से युक्‍त थी ।बाण ही उसके प्रवाह थे । धनुष स्‍त्रोत के समान प्रतीत होते थे । कटी हुई भुजाऍ पानी के सर्पो के समान वहां भरी हुई थी । वह रणभूमि के भीतर तीव्र वेग से प्रवाहित हो रही थी । कौरव और सृंजय दोनों को वह नदी बहाये लिये जाती थी । मनुष्‍यों के मस्‍तक उसमें प्रस्‍तर-खण्‍डका भ्रम उत्‍पन्‍न करते थे । शक्तियॉ मीन के समान थी । गदाऍ नाक थी । उष्‍णीष-वस्‍त्र (पगड़ी) फेनके तुल्‍य चमक रहे थे । बिखरी हुई ऑतें सर्पाकार प्रतीत होती थी । वीरों का अपहरण करनेवाली वह उग्र नदी मांस तथा रक्‍तरूपी कीचड़ से भरी थी । हाथी उसके भीतर ग्राह थे । ध्‍वजाऍ वृक्ष के तुल्‍य थी । वह नदी क्षत्रियों को अपने भीतर डुबोनेवाली थी । वहां क्रूरता छा रही थी । शरीर (लाशें) ही उसमें उतरने के लिये घाट थे । योद्धागण मगर जैसे जान पड़ते थे । उसको पार करना बहुत कठिन था । वह नदी लोगों को यमलोक में ले जानेवाली थी । मांसाहारी जन्‍तु उसके आस-पास डेरा डाले हुए थे । वहां कुत्‍ते और सियारो के झुंड जुट हुए थे । उसके सब ओर महाभयंकर मास-भक्षी पिशाच निवास करते थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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