महाभारत आदि पर्व अध्याय 65 श्लोक 27-56

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पञ्चषष्टितम (65) अध्‍याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)

महाभारत: आदि पर्व: पञ्चषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 27-56 का हिन्दी अनुवाद

देवताओं में जो सूर्य और चन्द्रमा माने गये हैं, वे दूसरे हैं और प्रधान दानवों में सूर्य तथा चन्द्रमा दूसरे हैं। महाराज ! ये विख्यात दानववंश कहे गये हैं, जो बड़े धैर्यवान् और महाबलवान हुए हैं। दनु के पुत्रों में निम्नांकित दानवों के दस कुल बहुत प्रसिद्व हैं। एकाक्ष, वीर मृतपा, प्रलम्ब, नरक, बातापी, शत्रुतपन, महान् असुर शठ, गविष्ठ, बनायु तथा दानव दीर्धजिहृ। भारत ! इन सबके पुत्र-पौत्र असंख्य बताये गये हैं। सिंहिका ने राहु नाम के पुत्र को उत्पन्न किया, जो चन्द्रमा और सूर्य का मान-मर्दन करने वाला है। इसके सिवा सुचन्द्र, चन्द्रहर्ता तथा चन्द्रपमर्दन को भी उसी ने जन्म दिया। क्रूरा (क्रोधा) के क्रूर स्वभाव वाले असंख्य पुत्र-पौत्र उत्पन्न हुए। शत्रुओं का नाश करने वाला क्रूरकमा्र क्रोधवश नाम गण भी क्रूरा की ही संतान है। दनायु के असरों में श्रेष्ठ चार पुत्र हुए- विक्षर, बल, वीर और महान् असुर वृत्र। काला के विख्यात पुत्र अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने में कुशल और साक्षात् काल के समान भयंकर थे। दानवों में उनकी बड़ी ख्याति थी। वे महान् पराक्रमी और शत्रुओं को संताप देने वाले थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- विनाशन, क्रोध, क्रोधहन्ता तथा क्रोधशत्रु। कालकेय नाम से विख्यात दूसरे-दूसरे असुर भी काल के ही पुत्र थे। असुरों के उपाध्याय (अध्यापक एवं पुरोहित) शुक्राचार्य महर्षि भृगु के पुत्र थे। उन्हें उशना भी कहते हैं। उशना के चार पुत्र हुए, जो असुरों के पुरोहित थे। इनके अतिरिक्त त्वष्टाधर तथा अत्रि ये दो पुत्र और हुए, जो रौद्र कर्म करने और कराने वाले थे। उशना के सभी पुत्र सूर्य के समान तेजस्वी तथा ब्रह्मलोक को ही परम आश्रय मानने वाले थे। राजन् ! मैंने पुराण जैसा सुन रक्खा है, उसके अनुसार तुमसे यह वेगशाली असुरों और देवताओं के वंश की उत्पत्ति का वृतान्त बताया है। महीपाल ! इनकी जो संताने हैं, उन सबकी पूर्णरूप से गणना नहीं की जा सकती; क्योंकि वे सब अनन्त गुने हैं। ताक्ष्र्य, अरिष्ठनेमि, गरूड़, अरूण, आरूणि, तथा वारूणि-ये विनता के पुत्र कहे गये हैं। शेष, अनन्त, वासुकि, तक्षक, कूर्म और कुलिक आदि नागगण कद्रू के पुत्र कहलाते हैं। राजन् ! भीमसेन, उग्रसेन, सुपर्ण, वरूण, गोपति, धृतराष्ट्र, सूर्यवर्चा, सत्यवाक्, अर्कपर्ण, विख्यात प्रयुत, भीम, सर्वज्ञ और जितेन्द्रिय चित्ररथ, शालिशिरा, चौदहवें पर्जन्य, पंद्रहवें कलि और सोलहबें नारद- ये सब देवगन्धर्व जाति वाले सोलह पुत्र मुनि के गर्भ से उत्पन्न कहे गये हैं। भारत ! इसके अतिरिक्त, अन्य बहुत-से वंशों की उत्पत्ति का वर्ण करता हूं। प्राधा नाम वाली दक्ष कन्या ने अनवद्या, मनु, वंशा, असुरा, मार्गणप्रिया, अरूपा, सुभगा और भासी इन कन्याओं को उत्पन्न किया। सिद्व, पूर्ण, वर्हि, महायशस्वी पूर्णायु, ब्रह्मचारी, रतिगुण, सातवें सुपर्ण, आठवें विश्वावसु, नवे भानु ओर दसवें सुचन्द्र- ये दस देव-गन्धर्व भी प्राधा के ही पुत्र बताये गये हैं। इनके सिवा महाभाग देवी प्राधा ने पहले देवर्षि (कश्‍यप) के समागम से इन प्रसिद्व अप्सराओं के शुभ लक्षण वाले समुदाय को उत्पन्न किया था। उनके नाम ये हैं- अलम्बुषा, मिश्रकेशी, विद्युत्पर्णा, तिलोत्तमा, अरूण, रक्षिता, रम्भा, मनोरमा, केशिनी, सुबाहू, सुरता, सुरजा और सुप्रिया। अतिवाहु, सुप्रसिद्व हाहा ओर हूहू तथा तुम्बुरू- ये चार श्रेष्ठ गन्धर्व भी प्रावा के ही पुत्र माने गये हैं। अमृत, ब्राह्मण, गौऐं गन्धर्व तथा अप्सराऐं- ये सब पुराण में कपिला की संतानें वतायी गयी हैं। राजन्! इस प्रकार मैंने तुम्हें सम्पूर्ण भूतों की उपत्पत्ति का वृतान्त वताया है। इसी तरह गन्धर्वो, अप्सराओं, नागों, सुपर्णों, रूद्रों मरूद्गणों, गौओं तथा श्रीसम्पन्न पुण्यकर्मा ब्राम्हणों के जन्म की कथा भलीभांति कही है। यह प्रसंग आयु देने वाला, पुण्यमय, प्रशंसनीय था सुनने में सुखद है। मनुष्य को चाहिये कि वह दोषदृष्टि न रखकर सदा इसे सुने और सुनावे। जो ब्राह्मण और देवताओं के समीप महात्माओं की इस वंशावली का नियम पूर्वक पाठ करता है, वह प्रचुर संतान, सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है तथा मृत्यु के पश्‍चात् उत्तम गति पाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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