महाभारत आदि पर्व अध्याय 66 श्लोक 1-22
षट्षष्टितम (66) अध्याय: आदि पर्व (सम्भाव पर्व)
महर्षियों तथा कश्यप-पत्नियों की संतान-परंपरा का वर्णन
वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! ब्रह्मा के मानस पुत्र छः महर्षियों के नाम तुम्हें ज्ञात हा चुके हैं। उनके सातवें पुत्र थे स्थणु स्थाणु परम तेजस्वी ग्यारह पुत्र विख्यात हैं। मृगव्याध, सर्प, महायशस्वी निर्ऋृति, अजैकपाद, अहिर्बुघ्न्य, शत्रुसंतापन पिनाकी, दहन, ईश्वर, परम कान्तिमान् कपाली, स्थाणु और भगवान भव- ये ग्यारह रूद्र माने गये हैं। मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलत्स्य पुलह और क्रतु- ये ब्रह्माजी के छः बड़े शक्तिशाली महर्षि हैं। अंगिरा के तीन पुत्र हुए, जो लोक में सर्वत्र विख्यात हैं। उनके नाम ये हैं- बृहस्पति, उतथ्य और संवर्त ! ये तीनों ही उत्तम व्रत धारण करने वाले हैं। मनुजेश्वर ! अत्रि के बहुत-से पुत्र सुने जाते हैं। ये सब-के-सब वेदवेत्ता, सिद्व और शान्तचित्त महर्षि हैं। परश्रेष्ठ ! बुद्विमान् पुलस्त्य मुनि के पुत्र राक्षस, बानर, किन्नर तथा यक्ष हैं। राजन् ! पुलह के शरभ, सिंह, किम्पुरूष, व्याघ्र, रीछ और ईहामृग (भेडि़या) जाति के पुत्र हुए। क्रतु (यज्ञ) के पुत्र क्रतु ही समान पवित्र, तीनों लोकों में विख्यात, सत्यवादी, व्रतपरायण तथा भगवान् सूर्य के आगे चलने वाले साठ हजार वालखिल्य ऋषि हुए। भूमिपाल ! ब्रह्माजी के दाहिने अंगूठे से महातपस्वी शान्तचित्त महर्षि भगवान् दक्ष उत्पन्न हुए। इसी प्रकार उन महात्मा के बायें अंगूठे से उनकी पत्नी का प्रादुर्भाव हुआ। महर्षि ने उसके गर्भ से पचास कन्याऐं उत्पन्न कीं। ये सभी कन्याऐं परम सुन्दर अंगोवाली तथा विकसित कमल के सदृश विशाल लोचनों से सुशोभित थीं। प्रजापति इक्ष के पुत्र जब नष्ट हो गये, तब उन्होंने अपनी उन कन्याओं को पुत्रि का बनाकर रखा (और उनका विवाह पुत्रि का धर्म के अनुसार ही किया)। राजन् ! दक्ष ने दस कन्याऐं धर्म को, सत्ताईस कन्याऐं चन्द्रमा को और तेरह कन्याऐं महर्षि कश्यप को दिव्य विधि के अनुसार समर्पित कर दीं। अब मैं धर्म की पत्तिनयों के नाम बता रहा हूं, सुनो- कीर्ति, लक्ष्मी, धृति, मेघा, पुष्टि, श्रद्वा, क्रिया, बुद्वि, लज्जा और मति- ये धर्म की दस पत्नियां हैं। स्वयंभू ब्रह्माजी ने इन सब को धर्म का द्वार निश्चित किया है अर्थात् इनके द्वारा धर्म में प्रवेश होता है। चन्द्रमा की सत्ताईस स्त्रियां समस्त लोकों में विख्यात हैं। वे पवित्र व्रत धारण करने वाली सोमपत्नियां काल-विभाग का ज्ञापन करने में नियुक्त हैं। लोक-व्यवहार निर्वाह करने के लिये वे सब-की-सब नक्षत्र-वाचक नामों से युक्त हैं। पितामह ब्रह्माजी के स्तन से उत्पन्न होने के कारण मुनिवर धर्मदेव उनके पुत्र माने गये हैं। प्रजापति दक्ष भी ब्रह्माजी के ही पुत्र हैं। दक्ष की कन्याओं के गर्भ से धर्म के आठ पुत्र उत्पन्न हुए, जिन्हें वसुगण कहते हैं। अब मैं वसुओं का विस्तार पूर्वक परिचय देता हूं। धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास- ये आठ वसु कहे गये हैं। धर और ब्रह्मवेत्ता ध्रुव धूम्रा के पुत्र हैं। चन्द्रमा मनस्विनी के और अनिल श्वासा के पुत्र हैं। अहरता के और अनल शाण्डिली के पुत्र हैं और प्रत्युष और प्रभास ये दोनों प्रभाता के पुत्र बताये गये हैं। धर के दो पुत्र हुए द्रविण और हुतहव्यवह। सब लोकों को अपना ग्रास बनाने वाले भगवान् काल ध्रुव के पुत्र हैं। सोम के मनोहर नामक स्त्री के गर्भ से प्रथम तो वर्चा नामक पुत्र हुआ, जिससे लोग वर्चस्वी (तेज, कान्ति और पराक्रम से सम्पन्न) होते हैं, फिर शिशिर, प्राण तथा रमण नामक पुत्र उत्पन्न हुए।
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