महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 30 श्लोक 1-23
त्रिंशो (30) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्तकवध पर्व )
अर्जुन के द्वारा वृषक और अचल का वध, शकुनि की माया और उसकी पराजय तथा कौरव, सेना का पलायन
संजय कहते हैं – राजन ! जो सदा इन्द्र के प्रिय सखा रहे हैं, उन अमित तेजस्वी प्राग्ज्योतिषपुर नरेश भगदत्त को मारकर अर्जुन दाहिनी ओर घूमे। उधर से गान्धरराज सुबल के दो पुत्र शत्रुनगरी पर विजय पानेवाले वृषक और अचल दोनो भाई आ पहॅुचे और युद्ध में अर्जुन को पीडित करने लगे। उन दोनो धुरर्धर वीरों ने अर्जुन पर आगे और पीछे से भी आक्रमण करके अत्यन्त वेगशाली पैने बाणों द्वारा उन्हें बहुत घायल कर दिया। तब कुन्तीकुमार अर्जुन ने अपने तीखे बाणों द्वारा सुबल पुत्र वृषक के घोड़ों, सारथि, रथ, धनुष, छत्र और ध्वजा को तिल-तिल करके काट डाला। तत्पश्चात् अर्जुन ने अपने बाण समूहों तथा नाना प्रकार के आयुधों द्वारा सुबल पुत्र आदि समस्त गान्धारों को पुन: व्याकुल कर दिया। फिश्र क्रोध में भरे हुए धनंजय ने हथियार उठाये हुए पॉच सौ गान्धार देशीय वीरों को अपने बाणों से मारकर यमलोक भेज दिया। महाबाहु वृषक उस अश्वहीन रथ से शीघ्र उतरकर अपने भाई अचल के रथ पर जा चढ़ा । फिर उसने अपने हाथ मे दूसरा धनुष ले लिया। इस प्रकार एक रथ पर बैठे हुए वे दोनो भाई वृषक और अचल बारंबार बाणों की वर्षा से अर्जुन को घायल करने लगे। महाराज ! आपके दोनो साले महामनस्वी राजकुमार वृषक और अचल, इन्द्र को वृत्रासुर तथा बलासुर के समान, अर्जुन को अत्यन्त घायल करने लगे। जैसे गर्मी के दो महीने सूर्य की उष्ण किरणों द्वारा सम्पूर्ण लोकों को संतप्त करते रहते हैं, उसी प्रकार वे दोनों भाई गान्धारराजकुमार लक्ष्य वेधने में सफल होकर पाण्डुपुत्र अर्जुन पर बारंबार आधात करने लगे। राजन ! वे नरश्रेष्ठ राजकुमार वृषक और अचल रथपर एक-दूसरे से सटकर खड़े थे । उसी अवस्था में अर्जुन ने एक ही बाण से उन दोनो को मार डाला। महाराज ! वे दोनो वीर परस्पर सगे भाई होने के कारण एक जैसे लक्षणों से युक्त थे । दोनो ही सिंह के समान पराक्रमी, लाल नेत्रो वाले तथा विशाल भुजाओं से सुशोभित थे । वे दोनो एक ही साथ रथ से पृथ्वी पर गिर पड़े। उन दोनो भाइयों के शरीर उनके बन्धुजनोंके लिये अत्यन्त प्रिय थे । वे अपने पवित्र यश को दसों दिशाओं मे फैलाकर रथ से भूतल पर गिरे और वहीं स्थिर हो गये। प्रजानाथ ! युद्ध से पीठ न दिखाने वाले अपने दोनों मामाओं को युद्ध में मारा गया देख आपके सभी पुत्र अपने नेत्रों से ऑसुओं की अत्यन्त वर्षा करने लगे। अपने दोनो भाइयों को मारा गया देख सैकड़ों मायाओं के प्रयोग में निपुण शकुनि ने श्रीकृष्ण और अर्जुन को मोहित करते हुए उनके प्रति माया का प्रयोग किया। फिर तो अर्जुन के ऊपर दंडे, लोहे के गोले, पत्थर, शतघ्री, शक्ति, गदा, परिघ, खग, शूल, मुद्रर, पटिश, कम्पन, ऋष्टि, नखर, मुसल, फरसे, छूरे, क्षुरप्र, नालीक, वत्सदन्त, अस्थिसंधि, चक्र, बाण, प्रास तथा अन्य नाना प्रकार के सैकड़ों और विदिशाओं से आ-आकर पड़ने लगे। गदहे, ऊँट, भैंसे, सिंह, व्याघ्र, रोझ, चीते, रीक्ष, कुत्ते, गीध, बन्दर, सॉप तथा नाना प्रकार के भूखे राक्षस एवं भॉति-भॉति के पक्षी अत्यन्त कुपित हो अर्जुन पर धावा करने लगे। तदनन्तर दिव्यास्त्रों के ज्ञाता शूरवीर कुन्तीपुत्र धनंजय सहसा बाण समूहों की वर्षा करते हुए उन सबको मारने लगे। शूरवीर अर्जुन के सुदृढ़ एवं श्रेष्ठ सायकों द्वारा मारे जाते हुए वे समस्त हिंसक पशु सब ओर से घायल हो घोर चीत्कार करते हुए वहीं नष्ट हो गये। तदनन्तर अर्जुन के रथ के समीप अन्धकार प्रकट हुआ और उस अन्धकार से क्रूरतापूर्ण बाते कानोमें, पकड़कर अर्जुन को डाँट बताने लगी।
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