महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 32 श्लोक 75-80
द्वात्रिंशो (32) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्तकवध पर्व )
इस प्रकार उन निर्भीक सैनिकों का महान् शक्तिशाली विपक्षी योद्धाओं के साथ अत्यन्त घमासान युद्ध हो रहा था, जो कच्चा मांस खानेवाले पशु-पक्षियों तथा पिशाचों के हर्ष की वृद्धि और यमराज के राष्ट्र की समृद्धि करनेवाला था। उस समय पैदल, रथी, घुड़सवार और हाथी सवारों के द्वारा बहुत से हाथीसवार, रथी,पैदल और घुड़सवार मारे गये । हाथियों ने हाथियोंको, रथियो ने शस्त्र उठाये हुए रथियों को, घुडसवारों ने घुड़सवारों को और पैदल योद्धाओं ने पैदल योद्धाओं को मार गिराया। रथियों ने हाथियों को, गजराजोंने बड़े-बड़े घोड़ों को, घुड़सवारों ने पैदलों को तथा श्रेष्ठ रथियो ने घुड़सवारों को धराशायी कर दिया । उनकी जिह्रा, दॉत और नेत्र-ये सब बाहर निकल आये थे । कवच और आभूषण टुकड़े-टुकड़े होकर पड़े थे । ऐसी अवस्था में वे सब योद्धा पृथ्वीपर गिरकर नष्ट हो गये थे। शत्रुओं के पास बहुतसे साधन थे । उनके हाथ में उत्तम अस्त्र-शस्त्र थे। उनके द्वारा मारे जाकर पृथ्वीपर पड़े हुए सैनिक बड़े भयंकर दिखायी देते थे । कितने ही योद्धा हाथियों और घोड़ों के पैरोंसे आहत होकर धरतीपर गिर पड़ते थे । कितने ही बड़े-बड़े रथों के पहियों से कुचलकर क्षत-विक्षत हो अत्यन्त व्याकुल हो रहे थे। वहां वह भयंकर जनसंहार हिंसक जन्तुओं, पक्षियों तथा राक्षसों को आनन्द प्रदान करनेवाला था । उसमें कुपित हुए वे महाबली शूरवीर एक-दूसरे को मारते हुए बलपूर्वक विचरण कर रहे थे। भरतनन्दन ! दोनो ओरकी सेनाऍ अत्यन्त आहत होकर खून से लथपथ हो एक दूसरी की ओर देख रही थी, इतने ही में सूर्यदेव अस्ताचल को जा पहॅुचे । फिर तो वे दोनों ही धीरे-धीरे अपने-अपने शिबिर की ओर चल दी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत संशप्तकवधपर्व में बारहवे दिन के युद्धमें सेनाका युद्धसे विरत हो अपने शिबिर को प्रस्थान विषयक बत्तीसवॉ अध्याय पूरा हुआ।
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