महाभारत विराट पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-14

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०९:४८, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==पन्चम (5) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)== <div style="...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

पन्चम (5) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

महाभारत: विराट पर्व: पन्चम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद

पाण्डवों का विराटनगर के समीप पहुँचकर श्मशान में एक शमीवृक्ष पर अपने अस्त्र-शस्त्र रखना

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय ! तदनन्तर वे वीर पाण्डव तलवार बाँधे, पीठ पर तूणीर कसे, गोह के चमड़े से बने हुए अंगुलित्र (दस्ताने) पहने पैदल चलते चलते यमुना नदी के समीप जा पहुँचे। इसके बाद वे यमुना के दक्षिण किनारे पर पैदल ही चलने लगे। उस समय उनके मन में यह अभिलाषा जाग उठी थी कि अब हम वनवास के कष्ट से मुक्त हो अपना राज्य प्राप्त कर लेंगे। उन सबने धनुष ले रखे थे। वे महान् धनुर्धर ओर महापराक्रमी वीर पर्वतों और वनों के दुर्गम प्रदेशों में डेरा डालते और हिंसक पशुओं को मारते हुए यात्रा कर रहे थे। आगे जाकर वे दशार्ण से उत्तर और पान्चाल से दक्षिण एवं यकृल्लोम तथा शूरसेन देशों के बीच सं होकर यात्रा करने लगे। उन्होंने हाथों में धनुष धारण कर रक्खे थे। उनकी कमर में तलवारें बँधी थीं। उनके शरीर मलिन एवं उदास थे। उन सबकी दाढ़ी-मूछें बढ़ गयीं थी। किसी के पूछने पर वे अपने को मत्स्य देया में निवास करने का इच्छूक बताते थे। इस प्रकार उन्होंने वन से निकलकर मत्स्यराष्ट्र के जनपद में प्रवेश किया। जनपद में आने पर द्रौपदी ने राजा युधिष्ठिर से कहा- ‘महाराज ! देखिये, यहाँ अनेक प्रकार के खेत और उनमें पहुँचने के लिये बहुत-सी पगडंडियाँ दिखाई देती हैं। जान पड़ता है, विराट की राजधानी अभी दूर होगी। मुझे बड़ी थकावट हो रही है, अतः हम एक रात और यहीं रहें। युधिष्ठिर बोले- धनंजय ! तुम द्रौपदी को कंधे पर उठाकर ले चलो। भारत ! इस वन से निकलकर अब हम लोग राजधानी में ही निवास करेंगे। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! तब गजराज के समान पराक्रमी अर्जुन ने तुरंत ही द्रौपदी को उठा लिया और नगर के निकट पहुँचकर उन्हें कंधे से उतारा। राजधानी के समीप पहुँचकर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा-‘भैया ! हम अपने अस्त्र-शस्त्र कहाँ रखकर नगर में प्रवेश करें ? ‘तात ! यदि अपने आयुधो के साथ हम इस नगर में प्रवेश करेंगे, तो निःसंदेह यहाँ के निवासियों को उद्वेग (भय) में डाल देंगे। ‘तुम्हारा गाण्डीव धनुष तो बहुत बड़ा और बहुत भारी है। संसार के सब लोगों में उसकी प्रसिद्धि है। ऐसी दशा में यदि हम अस्त्र-शस्त्र लेकर नगर में चलेंगे, तो वहाँ सब लोग हमें शीघ्र ही पहचान लेंगे। इसमें संशय नहीं है। ‘यदि हममें से एक भी पहचान लिया गया, तो हमें दुबारा बारह वर्षों के लिये वन में प्रवेश करना पड़ेगा; क्योंकि हमने ऐसी ही प्रतिज्ञा कर रक्खी है’। अर्जुन ने कहा- राजन् ! श्मशानभूमि के समीप एक टीले पर यह शमी का बहुत बड़ा सघन वृक्ष है। इसकी शाखाएँ बड़ी भयानक हैं, इससे इसपर चढ़ना कठिन है। पाण्डवों ! मेरा विश्वास है कि यहाँ कोई ऐसा मनुष्य नहीं है, जो हमें अस्त्र-शस्त्रों को यहाँ रखते समय देचा सके।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।