महाभारत सभा पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-12

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पंचसप्ततितम (75) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

महाभारत: सभा पर्व: पंचसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

गान्‍धारी की धृतराष्‍ट्र को चेतावनी और धृतराष्‍ट्र का अस्‍वीकार करना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं—जनमेजय ! उस समय भावी अनिष्‍टृ की आशंका से धर्मपरायणा गान्‍धारी पुत्र स्‍नेहवश शोक से कातर हो उठी और राजा धृतराष्‍ट्र से इस प्रकार बोली- ‘आर्यपुत्र ! दुर्योधन के जन्‍म लेने पर परम बुद्धिमान विदुरजी ने कहा था-यह बालक अपने कुल का नाश करने-वाला होगा; अत: इसे त्‍याग देना चाहिये। ‘भारत ! इसने जन्‍म लेते ही गीदड़ की भाँति ‘हुँआ-हुँआ’ का शब्‍द किया था; अत: यह अवश्‍य ही इस कुल का अन्‍त करने वाला होगा। कौरवों ! आप लोग भी इस बात को अच्‍छी तरह समझ लें।‘भरतकुल तिलक ! आप अपने ही दोष से इस कुल को विपत्ति महासागर में न डुबाइये। प्रभो ! इन उदण्‍ड बालकों की हाँ में हाँ न मिलाइये। ‘इस कुल के भयंकर विनाश में स्‍वयं ही कारण न बनिये। भरतश्रेष्‍ठ ! बँधे हुए पुल को कौन तोडे़गा? बुझी हुई वैर की आग को फिर कौन भड़कायेगा? कुन्‍ती के शान्ति परायण पुत्रों को फिर कुपित करने का साहस कौन करेगा? अजमीढ-कुल के रत्‍न ! आप सब कुछ जानते और याद रखते हैं, तो भी मैं पुन: आपको स्‍मरण दिलाती रहूँगी। ‘राजन् ! जिसकी बुद्धि खोटी है, उसे शास्‍त्र भी भला-बुरा कुछ नहीं सिखा सकता। मन्‍दबुद्धि बालक वृद्धों जैसा विवेकशील किसी प्रकार नहीं हो सकता। ‘आपके पुत्र आपके ही नियन्‍त्रण में रहे, ऐसी चेष्‍टृा कीजिये । ऐसा ने हो कि वे सभी मर्यादा का त्‍याग करके प्राणों से हाथ धो बैठें और आपको इस बुढ़ापे में छोड़कर चल बसें । इसलिये आप मेरी बात मानकर इस कुलंगार दुर्योधन को त्‍याग दें।‘महाराज ! आपको जो करना चाहिये था, वह आपने पुत्र स्‍नेहवश नहीं किया। अत: समझ लीजिये, उसी का यह फल प्राप्‍त हुआ, जो समूचे कुल के विनाश का कारण होने जा रहा है। ‘शान्ति, धर्म तथा उत्तम नीति से युक्‍त जो आपकी बुद्धि थी, वह बनी रहे। आप प्रमाद मत कीजिये । क्रूरतापूर्ण कर्मों से प्राप्‍त की हुई लक्ष्‍मी विनाशशील होती है और कोमलतापूर्ण बर्ताव से बढ़ी हुई धन-सम्‍पति पुत्र पौत्रोंतक चली जाती है’। तब महाराज धृतराष्‍ट्र ने धर्म पर दृष्टि रखने वाली गान्‍धारी से कहा-‘देवि ! इस कुल का अन्‍त भले ही हो जाय, परंतु मैं दुर्योधन को रोक नहीं सकता। ’ये सब जैसा चाहते हैं, वैसा ही हो । पाण्‍डव लौट आयें और मेरे पुत्र उनके साथ फिर जूआ खेंलें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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