श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 54 श्लोक 17-31

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दशम स्कन्ध: चतुःपञ्चाशत्त्मोऽध्यायः (54) (उत्तरार्धः)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: चतुःपञ्चाशत्त्मोऽध्यायः श्लोक 17-31 का हिन्दी अनुवाद

परीक्षित्! जब मित्रों ने इस प्रकार समझाया, तब चेदिराज शिशुपाल अपने अनुयायियों के साथ अपनी राजधानी को लौट गया और उसके मित्र राजा भी, जो मरने से बचे थे, अपने-अपने नगरों को चले गये ।

रुक्मिणीजी का बड़ा भाई रुक्मी भगवान श्रीकृष्ण से बहुत द्वेष रखता था। उसको यह बात बिलकुल सहन न हुई कि मेरी बहिन को श्रीकृष्ण हर ले जायँ और राक्षस रीति से बलपूर्वक उसके साथ विवाह करें। रुक्मी बली तो था ही, उसने एक अक्षौहिणी सेना साथ ले ली और श्रीकृष्ण का पीछा किया । महाबाहु रुक्मी क्रोध के मारे जल रहा था। उसने कवच पहनकर और धनुष धारण करके समस्त नरपतियों के सामने यह प्रतिज्ञा की— ‘मैं आप लोगों के बीच में यह शपथ करता हूँ कि यदि मैं युद्ध में श्रीकृष्ण को न मार सका और अपनी बहिन रुक्मिणी को न लौटा सका तो अपनी राजधानी कुण्डिन पुर में प्रवेश नहीं करूँगा’। परीक्षित्! यह कहकर वह रथ पर सवार हो गया और सारथि से बोला—‘जहाँ कृष्ण हो वहाँ शीघ्र-से-शीघ्र मेरा रथ ले चलो। आज मेरा उसी के साथ युद्ध होगा । आज मैं अपने तीखे बाणों से उस खोटी बुद्धि वाले ग्वाले के बल-वीर्य का घमंड चूर-चूर कर दूँगा। देखो तो उसका साहस, वह हमारी बहिन को बलपूर्वक हर ले गया है’ । परीक्षित्! रुक्मी की बुद्धि बिगड़ गयी थी। वह भगवान के तेज-प्रभाव को बिलकुल नहीं जानता था। इसी से इस प्रकार बहक-बहककर बातें करता हुआ वह एक ही रथ से श्रीकृष्ण के पास पहुँचकर ललकारने लगा—‘खड़ा रह! खड़ा रह!’ । उसने अपने धनुष को बलपूर्वक खींचकर भगवान श्रीकृष्ण को तीन बाण मारे और कहा—‘एक क्षण मेरे सामने ठहर! यदुवंशियों के कुलकलंक! जैसे कौआ होम की सामग्री चुराकर उड़ जाय, वैसे ही तू मेरी बहिन को चुराकर कहाँ भागा जा रहा है ? अरे मन्द! तू बड़ा मायावी और कपट-युद्ध में कुशल है। आज मैं तेरा सारा गर्व खर्व किये डालता हूँ । देख! जब तक मेरे बाण तुझे धरती पर सुला नहीं देते, उसके पहले ही इस बच्ची को छोड़कर भाग जा।’ रुक्मी की बात सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मुसकराने लगे। उन्होंने उसका धनुष काट डाला और उस पर छः बाण छोड़े । साथ ही भगवान श्रीकृष्ण ने आठ बाण उसके चार घोंड़ो पर और दो सारथि पर छोड़े और तीन बाणों से उसके रथ की ध्वजा को काट डाला। तब रुक्मी ने दूसरा धनुष उठाया और भगवान श्रीकृष्ण को पाँच बाण मारे । उन बाणों के लगने पर उन्होंने उसका वह धनुष भी काट डाला। रुक्मी ने इसके बाद एक और धनुष लिया, परन्तु हाथ में लेते-ही-लेते अविनाशी अच्युत ने उसे भी काट डाला । इस प्रकार रुक्मी ने परिघ, पट्टिश, शूल, ढाल, तलवार, शक्ति और तोमर—जितने अस्त्र-शस्त्र उठाये, उन सभी को भगवान ने प्रहार करने के पहले ही काट डाला । अब रुक्मी क्रोधवश हाथ में तलवार लेकर भगवान श्रीकृष्ण को मार डालने की इच्छा से रथ से कूद पड़ा और इस प्रकार उनकी ओर झपटा, जैसे पतिंगा आग की ओर लपकता है । जब भगवान ने देखा कि रुक्मी मुझ पर चोट करना चाहता है, तब उन्होंने अपने बाणों से उसकी ढाल-तलवार को तिल-तिलकर करके काट दिया और उसको मार डालने के लिये हाथ में तीखी तलवार निकाल ली ।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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