महाभारत वन पर्व अध्याय 202 श्लोक 22-31

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:१६, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वयधिकद्विशततम (202) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: द्वयधिकद्विशततमो अध्‍याय : श्लोक 22-31 का हिन्दी अनुवाद


महाराज। आपका कल्‍याण हो। आप उस दैत्‍य का विनाश कीजिये । इसके विपरीत आपको कोई विचार नहीं करना चाहिये। उसका वध कर‍के आप सदा बनी रहने वाली अक्षय एवं महान् कीर्ति प्राप्‍त करेंगे । बालू के भीतर छिपकर रहने वाला वह क्रूर राक्षक एक वर्ष में एक ही बार सांस लेता है । जिस समय वह सांस लेता है, उस समय पर्वत, वन और काननों सहित यह सारी पृथ्‍वी डोलने लगती है। उसके सांस की आंधी से धूल का इतना उंचा बवंडर उठता है कि वह सूर्य के मार्ग को भी ढक लेता है और सात दिनों तक वहां भूकम्‍प होता रहता है। आग की चिनगारियां, ज्‍वालाएं और धुआं उठकर अत्‍यन्‍त भंयकर दृश्‍य उपस्थित करते हैं । राजन् इस कारण मेरा अपने आश्रम में रहना कठिन हो गया है । सब लोगों के हित के लिये आप उस राक्षस को नष्‍ट कीजिये । उस असुर के मारे जाने पर सब लोग स्‍वस्‍थ एवं सुखी हो जायंगे। मेरा विश्‍वास है कि आप अकेले ही उसका नाश करने के लिये पर्याप्‍त हैं । भूपाल । भगवान विष्‍णु अपने तेज से आपके तेज को बढ़ायेगे। उन्‍होंने पूर्वकाल में मुझे यह वर दिया था कि जो राजा उस भयानक एवं महान् असुर का वध करने को उद्यत होगा, उस दुर्धर्ष वीर के भीतर मेरा वैष्‍णव तेज प्रवेश करेगा । महाराज । अत: आप भगवान का दु:सह तेज धारण करके पृथ्‍वी पर रहने वाले उस भयानक पराक्रमी दैत्‍यको नष्‍ट कीजिये । राजन् । धुन्‍धु महातेजस्‍वी असुर है। साधारण तेज से सौ वर्षो में भी कोई उसे नष्‍ट नहीं कर सकता ।

इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍यापर्व में धुन्‍धुमारोपाख्‍यान विषयक दो सौ दोवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।