महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 107 श्लोक 15-19

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:३१, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्ताधिकशततम (107) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 15-19 का हिन्दी अनुवाद

'जिनकी कृपा से समस्त देवताओं और असुरों को भी यथेष्ट भोग प्राप्त होते हैं, उन्हीं अविनाशी योगी भगवान् विष्णु का मैं प्रणतभाव से दर्शन करना चाहता हूँ'। गालव के इस प्रकार कहने पर उनके सखा विनतानन्दन गरुड ने अत्यंत प्रसन्न होकर उनका प्रिय करने की इच्छा से उन्हें दर्शन दिया और इस प्रकार कहा - 'गालव ! तुम मेरे प्रिय सुहृद हो और मेरे सुहृदों के भी प्रिय सुहृद हो । सुहृदों का यह कर्तव्य है कि यदि उनके पास धन-वैभव हो तो वे उसका अपने सुहृद का अभीष्ट मनोरथ पूर्ण करने के लिए उपयोग करें । 'ब्रह्मन् ! मेरे सबसे बड़े वैभव हैं इन्द्र के छोटे भाई भगवान विष्णु । मैंने पहले तुम्हारे लिए उनसे निवेदन किया था और उन्होनें मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार करके मेरा मनोरथ पूर्ण किया था। 'अत: आओ' हम दोनों चलें । गालव ! मैं तुमहीन सुखपूर्वक ऐसे देश में पहुंचा दूंगा, जो पृथ्वी के अंतर्गत तथा समुद्र के उस पार है । चलो, विलंब न करो'।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में गालव चरित्र विषयक एक सौ सातवाँ अध्याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।