श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 38 श्लोक 39-43

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित १२:३६, २९ जुलाई २०१५ का अवतरण (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

दशम स्कन्ध: अष्टात्रिंशोऽध्यायः (38) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: अष्टात्रिंशोऽध्यायः श्लोक 39-43 का हिन्दी अनुवाद

इसके बाद भगवान ने अतिथि अक्रूरजी को एक गाय दी और पैर दबाकर उनकी थकावट दूर की तथा बड़े आदर एवं श्रद्धा से उन्हें पवित्र और अनेक गुणों से युक्त अन्न का भोजन कराया । जब वे भोजन कर चुके, तब धर्म के परम मर्मज्ञ भगवान बलरामजी ने बड़े प्रेम से मुखवास (पान-इलायची आदि) और सुगन्धित माला आदि देकर उन्हें अत्यन्त आनन्दित किया । इस प्रकार सत्कार हो चुकने पर नन्दरायजी ने उनके पास आकर पूछा—‘अक्रूरजी! आप लोग निर्दयी कंस के जीते-जी किस प्रकार अपने दिन काटते हैं ? अरे! उसके रहते आप लोगों की वही दशा है जो कसाई द्वारा पाली हुई भेड़ों की होती है । जिस इन्द्रियाराम पापी ने अपनी बिलखती हुई बहन के नन्हें-नन्हें बच्चों को मार डाला। आप लोग उसकी प्रजा हैं। फिर आप सुखी हैं, यह अनुमान तो हम कर ही कैसे सकते हैं ? अक्रूरजी ने नन्दबाबा से पहले ही कुशल-मंगल पूछ लिया था। जब इस प्रकार नन्दबाबा ने मधुर वाणी से अक्रूरजी से कुशल-मंगल पूछा और उनका सम्मान किया तब अक्रूरजी के शरीर से रास्ता चलने की जो कुछ थकावट थी, वह सब दूर हो गयी ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-