श्रीमद्भागवत महापुराण द्वादश स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 15-23

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द्वादश स्कन्ध: त्रयोदशोऽध्यायः (13)

श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: त्रयोदशोऽध्यायः श्लोक 15-23 का हिन्दी अनुवाद

यह श्रीमद्भागवत समस्त उपनिषदों का सार है। जो इस रस-सुधा का पान करके छक चुका है, वह किसी और पुराण-शास्त्र में रम नहीं सकता । जैसे नदियों में गंगा, देवताओं में विष्णु और वैष्णवों में श्रीशंकरजी सर्वश्रेष्ठ हैं, वैस ही पुराणों में श्रीमद्भागवत है । शौनकादि ऋषियों! जैसे सम्पूर्ण क्षेत्रों में काशी सर्वश्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणों में श्रीमद्भागवत का स्थान सबसे ऊँचा है । यह श्रीमद्भागवत महापुराण सर्वथा निर्दोष है। भगवान के प्यारे भक्त वैष्णव इससे बड़ा प्रेम करते हैं। इस पुराणों में जीवन्मुक्त परमहंसों के सर्वश्रेष्ठ, अद्वितीय एवं माया के लेश से रहित ज्ञान का गान किया गया है। इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विलक्षणता यह है कि इसका नैष्कर्म्य अर्थात् कर्मों की आत्यन्तिक निवृत्ति भी ज्ञान-वैराग्य एवं भक्ति से युक्त है। जो इसका श्रवण, पठन और मनन करने लगता है, उसे भगवान की भक्ति प्राप्त हो जाती है और वह मुक्त हो जाता है । यह श्रीमद्भागवत भगवतत्व ज्ञान का एक श्रेष्ठ प्रकाशक है। इसकी तुलना में और कोई भी पुराण नहीं है। इसे पहले-पहल स्वयं भगवान नारायण ने ब्रम्हाजी के लिये प्रकट किया था। फिर उन्होंने ही ब्रम्हाजी के रूप से देवर्षि नारद को उपदेश किया और नारदजी के रूप से भगवान श्रीकृष्णद्वैपायन व्यास को। तदनन्तर उन्होंने ही व्यासरूप से योगीन्द्र शुकदेवजी को और श्रीशुकदेवजी के रूप से अत्यन्त करुणावश राजर्षि परीक्षित् को उपदेश किया। वे भगवान परम शुद्ध एवं मायामल से रहित हैं। शोक और मृत्यु उनके पास तक नहीं फटक सकते। हम सब उन्हीं परम सत्यस्वरुप परमेश्वर का ध्यान करते हैं । हम उन सर्वसाक्षी भगवान वासुदेव को नमस्कार करते हैं, जिन्होंने कृपा करके मोक्षाभिलाषी ब्रम्हाजी को इस श्रीमद्भागवत महापुराण का उपदेश किया । साथ ही हम उन योगिराज ब्रम्हस्वरुप श्रीशुकदेवजी को भी नमस्कार करते हैं, जिन्होंने श्रीमद्भागवत महापुराण सुनाकर संसार-सर्प से डसे हुए राजर्षि परीक्षित् को मुक्त किया । देवताओं के आराध्यदेव सर्वेश्वर! आप ही हमारे एकमात्र स्वामी एवं सर्वस्व हैं। अब आप ऐसी कृपा कीजिये कि बार-बार जन्म ग्रहण करते रहने पर भी आपके चरणकमलों में हमारी अविचल भक्ति बनी रहे । जब भगवान के नामों का संकीर्तन सारे पापों को सर्वथा नष्ट कर देता है और जिन भगवान के चरणों में आत्मसमर्पण, उनके चरणों में प्रणति सर्वदा के लिये सब प्रकार के दुःखों को शान्त कर देती है, उन्हीं परम-तत्वस्वरुप श्रीहरि को मैं नमस्कार करता हूँ ।

सम्पूर्णोऽयं ग्रन्थः



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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