महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 16 श्लोक 21-28
षोडश (16) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
फिर अज्ञातवास के समय कीचकने जो आपके सामने ही राजकुमारी द्रोपदी को लात मारी थी, उस घटना को आपने सहासा कैसे भुला दिया? ’राजन! हम बलवान् हैं, देवताओं के लिये भी हमें परास्त करना कठिन होगा ता भी विराटनगर में हमें कैसे दासता करनी पड़ी थी, इसे याद कीजिये। ’शत्रुदमन नरेश! द्रोणाचार्य और भीष्म के साथ जो आपका युद्ध हुआ था, वैसा ही दूसरा युद्ध आपके सामने उपस्थित है, इस समय आपको एकमात्र अपने मन के साथ युद्ध करना है। ’इस युद्ध में न तो बाणों का काम है, न मित्रों और बन्धुओं की सहायता का। अकेले आपको ही लड़ना है। वह युद्ध आपके सामने उपस्थित है। ’इस युद्ध में विजय पाये बिना यदि आप प्राणों का परित्याग कर देंगे तो दूसरा देह धारण करके पुनः उन्हीं शत्रुओं के साथ आपको युद्ध करना पडे़गा। ’भरतश्रेष्ठ! इसलिये प्रत्यक्ष दिखायी देने वाले साकार शत्रु को छोड़कर अव्यक्त (सूक्ष्म) शत्रु मनके साथ युद्ध करने के लिये आपको अभी चल देना चाहिये; विचार आदि अपनी बौद्धिक क्रियाओं द्वारा उसके साथ आप अवश्य युद्ध करें। ’महाराज! यदि युद्ध में आपने मन को परास्त नहीं किया तो पता नहीं, आप किस अवस्था को पहॅुच जायॅगे? और यदि मन को जीत लिया तो अवश्य कृतकृत्य हो जायॅगे। ’प्राणियों के आवागमन को देखते हुए इस विचार धारा को बुद्धि में स्थिर करके आप पिता-पितामहों के आचार में प्रतिष्ठित हो यथोचित रूप से राज्य का शासन कीजिये। ’सौभाग्य की बात है कि पापी दुर्योधन सेवकों सहित युद्ध में मारा गया और सौभाग्य से ही आप दुःशासन के हाथ से मुक्त हुए द्रोपदी के केशपाश की भाति युद्ध से छुटकारा पा गये। ’कुन्तीनन्दन! आप विधिपूर्वक दक्षिणा देते हुए अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान करें। हम सभी भाई और पराक्रमी श्री कृष्ण आपके आज्ञापालक हैं,।
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